Book Title: Swadhyaya ki Maniya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_4_001687.pdf

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Page 8
________________ 101 द्वारा उपेक्षा की जाती है। अत: नैतिक मूल्यों और सदाचार से हमारी आस्था उठती जा रही है। इस विकृत परिस्थिति में यदि मनुष्य के चरित्र को उठाना है और उसे सन्मार्ग एवं नैतिकता की ओर प्रेरित करना है तो हमें अपने अध्ययन की दृष्टि को बदलना होगा। आज साहित्य के नाम पर जो भी है वह पठनीय है, ऐसा नहीं है। आज यह आवश्यक है कि सत्साहित्य का प्रसारण हो और लोगों में उसके अध्ययन की अभिरुचि जागृत हो। सत्साहित्य और सूक्ति . सत्साहित्य की विविध विधाओं में उपदेशात्मक गाथाओं और सूक्तियों का अपना महत्त्व है। ये गाथायें या सूक्तियाँ अति संक्षेप में गहन तथ्यों को प्रकाशित करने में समर्थ होती हैं। इनके माध्यम से अल्प स्वाध्याय से भी व्यक्ति उन सारभूत तथ्यों को पा लेता है, जो उसके जीवन के विकास एवं मूल्यनिष्ठा में सहायक होते हैं। यदि व्यक्ति नियमित रूप से सत्साहित्य की पाँच गाथाओं या श्लोकों का भी पठन एवं चिन्तन करे, तो उसके जीवन की दिशा बदल सकती है। कहा भी है सतसैया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर। देखन में छोटन लगे, घाव करे गम्भीर।। --- महाकवि बिहारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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