Book Title: Sutrakrutang me Varnit Kuch Rushiyo ki Pehchan Author(s): Arun Pratap Sinh Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf View full book textPage 4
________________ डॉ० अरुणप्रताप सिंह २२१ ऋषिभाषित के १४वें अध्याय में बाहुक के उपदेशों का संकलन है। ऋषिभाषित एवं सूत्रकृतांग के अतिरिक्त कालान्तर के ग्रन्थों-सूत्रकृतांग चूणि' एवं शीलांकाचार्य की सूत्रकृतांग वत्ति' में भी बाहुक का उल्लेख प्राप्त होता है। इन सारे सन्दर्भो में बाहुक एक सम्मानित ऋषि के रूप में प्रस्तुत हैं। बाहुक की मूल शिक्षा जो हमें ऋषिभाषित में प्राप्त होती है, वह तृष्णा ( भावना ) एवं संसार के त्याग से सम्बन्धित है। बाहुक के अनुसार केवल वही व्यक्ति मोक्ष मार्ग की ओर निष्कंटक होकर प्रयाण कर सकता है जिसने अपनी तृष्णाओं को जीत लिया है इसके विपरीत तृष्णाओं से पराजित व्यक्ति नरकगामी बनता है। स्पष्टतः बाहुक अनासक्त भाव से किये हुए काम पर बल देते हैं और कहते हैं कि निष्कामभाव से किया हुआ कर्म ही मुक्तिपथगामी होता है। बौद्ध साक्ष्य बाहुक ऋषि का उल्लेख नहीं करते अपितु बाहिय दारुचीरिय नामक एक अर्हत् ऋषि का वर्णन अवश्य करते हैं। अंगुत्तर निकाय में बाहिय का उल्लेख एक ऐसे ऋषि के रूप में किया गया है जो सत्य का सद्यः साक्षात्कार कर लेता है। बौद्ध साहित्य में इस बाहिय को महात्मा बुद्ध का शिष्य कहा गया है। जहाँ तक वैदिक साहित्य में बाहक के वर्णन का प्रश्न है, इसमें बाहुव्रक्त नामक ऋषि का उल्लेख मिलता है।५ ऋग्वेद के कुछ मन्त्र उनके द्वारा प्रस्फुटित बताए जाते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य कोई सूचना हम बाहुक ऋषि के बारे में नहीं पाते, जिसकी समता हम जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित बाहुक या बाहिय से कर सकें। महाभारत में एक बाहक का नामोल्लेख अवश्य हुआ है, परन्तु एक योद्धा के रूप में। महाभारत के वनपर्व में महाराजा नल को भी बाहुक कहा गया है जब वे छद्म वेश में अयोध्या नरेश रिपवर्ण के यहाँ थे। एक बाहुक नामधारी नाग का भी उल्लेख महाभारत में प्राप्त होता है जो जन्मेजय के सर्पयज्ञ में दग्ध हो गया था। हम निश्चय ही बाहुक नामधारी इन पुरुषों का बाहुक ऋषि से सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकते। उपर्युक्त तथ्यों से यह सम्भावना प्रबल दिखाई पड़ती है कि सूत्रकृतांग एवं ऋषिभाषित में वर्णित बाहुक गौतम बुद्ध के शिष्य बाहिय ही हैं। ऋषिभाषित में स्वयं गौतम बुद्ध एवं उनके अनेक शिष्यों का वर्णन सम्मान के साथ किया गया है। बाहुक की जो शिक्षायें ऋषिभाषित में वर्णित हैं, वे बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के अनुरूप हैं। बौद्ध धर्म में दुःखों का मूल कारण तृष्णा माना गया है और ऋषिभाषित में बाहुक तृष्णा के परिहार की ही बात १. सूत्रकृतांगचूणि, पृ० १२१ सूत्रकृतांग शीलांक टीका, पृ० १५ इसिभासियाइं, पृ० २७ Pali Proper Names, Vol. II, PP. 281-83 महाभारत की नामानुक्रमणिका पृ० २१६ महाभारत, वनपर्व, ६६०२० वही, आदिपर्व, १७३।१३ ५. ७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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