Book Title: Sutrakrutang me Varnit Kuch Rushiyo ki Pehchan
Author(s): Arun Pratap Sinh
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

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Page 9
________________ 226 सूत्रकृतांग में वर्णित कुछ ऋषियों की पहचान सम्बन्धित थे / इन ऋषियों के उपदेश एवं विचार इतने लोकप्रिय थे कि सूत्रकृतांगकार को उनका उदाहरण देना पड़ा। इन ऋषियों को अपनी आलोचना का पात्र बनाकर भी उनको महर्षि एवं सिद्धि प्राप्तकर्ता कहकर उनकी महानता का सम्मान किया गया है। सूत्रकृतांग में तो साम्प्रदायिक अभिनिवेश के दर्शन होते हैं, परन्तु इस ग्रंथ से भी प्राचीन ग्रंथ ऋषिभाषित में इन ऋषियों को अत्यन्त सम्मान के साथ श्रद्धासुमन समर्पित किये गये हैं। यहाँ साम्प्रदायिकता की गन्ध भी नहीं है / जैन परम्परा के समान बौद्ध एवं वैदिक परम्परा के प्राचीनतम साहित्य में इनके नामों का होना इनकी ऐतिहासिकता को स्वयं प्रमाणित करता है। . ऐतिहासिक तथ्यों के निर्धारण में नितान्त वस्तुपरक दष्टिकोण सम्भव नहीं है क्योंकि वैज्ञानिक उपकरणों की भाँति हम इन्हें प्रयोगशाला में सिद्ध नहीं कर सकते / सम्राटों की भाँति इन ऋषियों की कोई राजचिह्नांकित मुद्रा या अभिलेख भी प्राप्त नहीं होते जिससे इनकी ऐतिहासिकता निर्विवाद रूप से प्रमाणित की जा सके / इनकी ऐतिहासिकता को सिद्ध करने के लिए हमारे पास केवल साहित्यिक स्रोत ही उपलब्ध हैं। विभिन्न परम्पराओं के विभिन्न ग्रंथ जब किसी व्यक्ति या घटना पर एक दृष्टिकोण या लगभग समान दृष्टिकोण रखें तो हमें उस व्यक्ति या घटना की ऐतिहासिकता पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि उसकी प्रामाणिकता विभिन्न परम्पराओं के साक्ष्य स्वयं करते हैं। सूत्रकृतांग में वणित ऋषियों के सम्बन्ध में हम देखते हैं कि सैद्धान्तिक (धार्मिक ) ग्रंथ ऋषियों के उपदेशों एवं विचारों के बारे में समान दृष्टिकोण रखते हैं। उदाहरणस्वरूप, अर्हत् रामपुत्त का जो वर्णन हमें सूत्रकृतांग एवं ऋषिभाषित में प्राप्त होता है प्रायः वही वर्णन बौद्ध ग्रन्थों में भी है। दोनों ही परम्पराएँ उन्हें ध्यान एवं समाधि के क्षेत्र में अग्रणी मानती हैं। इसी प्रकार अर्हद् असित देवल सम्बन्धी विवरण तीनों परम्पराओं में प्रायः समान है तथा तीनों ही परम्पराएँ उन्हें ऋषि नारद से सम्बन्धित करती हैं। ऋषि द्वैपायण के सम्बन्ध में जैन, बौद्ध एवं वैदिक परम्परा के ग्रन्थ समान दृष्टिकोण रखते हैं--ये उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि इन ऋषियों का ऐतिहासिक अस्तित्व था। अपनी महानता अपने विचारों की उदात्तता के कारण ही ये तीनों परम्पराओं में मान्य हुए / यद्यपि हम इनके तिथि क्रम का निर्धारण नहीं कर सकते परन्तु यह अवश्य कह सकते हैं कि इन ऋषियों का अस्तित्व महावीर एवं बुद्ध के पूर्व या समकालीन अवश्य रहा होगा / प्रवक्ता, प्राचीन इतिहास श्री बजरंग महाविद्यालय सिकन्दरपुर, बलिया उ०प्र० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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