Book Title: Sutrakrutang me Varnit Kuch Rushiyo ki Pehchan
Author(s): Arun Pratap Sinh
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

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Page 1
________________ सूत्रकृतांग में वर्णित कुछ ऋषियों की पहचान डॉ० अरुणप्रताप सिंह सूत्रकृतांग जैन अंग साहित्य का द्वितीय ग्रन्थ है । प्राचीनता एवं विषय के दृष्टिकोण से इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसका प्रथम श्रुतस्कन्ध आचारांग एवं ऋषिभाषित के समान प्राचीन है । सूत्रकृतांग में मुख्यतः दर्शन सम्बन्धी वर्णन है जिनमें जैन एवं जैनेतर - दोनों परम्परा के मतों का उल्लेख किया गया है । इन उल्लेखों से यह स्पष्ट होता है कि सूत्रकृतांगकार का मुख्य उद्देश्य अन्य मतों का खण्डन एवं जैन मत का मण्डन करना है । इसी संदर्भ में सूत्रकृतांगकार कुछ ऋषियों का उल्लेख करता है । इनमें नमि विदेही, रामपुत्त, बाहुक, नारायण, असित देवल, द्वैपायन एवं पाराशर मुख्य हैं । ' इन ऋषियों के सम्बन्ध में यह कहा गया है कि इन्होंने सचित्त जल, हरे बीजों का सेवन करते हुए भी सिद्धि को प्राप्त किया था । इनका उल्लेख जैन धर्म से इतर ऋषियों के रूप में किया गया है क्योंकि जैन धर्म के सामान्य नियम के अनुसार इनका सेवन एक मुनि के लिए निषिद्ध है । फिर भी इन ऋषियों के लिए अनेक प्रशंसासूचक शब्दों का प्रयोग किया गया है । इनके लिए प्रयुक्त महापुरुष, तपोधन, महष, सिद्ध आदि विशेषणों से इन ऋषियों की महत्ता एवं लोकप्रियता स्वतः स्पष्ट होती है । यहाँ यह प्रश्न विचारणीय है कि ये ऋषि मात्र पौराणिक हैं या इनकी ऐतिहासिकता सिद्ध की जा सकती है । इनकी ऐतिहासिकता सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि इनका उल्लेख अन्य ग्रन्थों से भी प्राप्त हो । पूरे भारतीय साहित्य का अवलोकन करने से यह स्पष्ट होता है कि इन ऋषियों का उल्लेख न केवल सूत्रकृतांग एवं अन्य जैन ग्रन्थों में हुआ है अपितु वैदिक एवं बौद्ध साहित्य में भी इनका उल्लेख प्रचुरता से प्राप्त होता है । भारतीय साहित्य में इन ऋषियों का उल्लेख, जहाँ तक मैं खोज कर सका हूँ, निम्न प्रकार से है १. Jain Education International आहंसु महापुरिसा पुव्वि तत्ततवोधणा । उदएण सिद्धिमावन्ना तत्थ मंदो विसीयति ॥ अभुंजिया नमी विदेही रामगुत्ते या भुंजिआ । बाहुए उदगं भोज्जा तहा नारायणे रिसी ॥ आसिले देवले चेव दीवायण महारिसी । पारासरे दगं भोच्चा बीयाणि हरियाणि य ॥ एते पुव्वं महापुरिसा आहिता इस संमता । भोच्चा बीओदगं सिद्धा इति मेअमणुस्सुअ || सूत्रकृतांग, १/३/४/१-४ सं० अमर मुनि, आत्मज्ञान पीठ, माणसा ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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