Book Title: Sutrakritangam
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Venichand Surchand
View full book text
________________
Shri Mahal (@
vadhana Kendra
www.kobatirth.org
a nmandir
ऊ99000000000000000000
Acharya Shri Kailashag दो चेव सुयक्खंघा अज्झयणाई च हुंति तेवीसं । तेत्तिसुदेसणकाला आयाराओ दुगुणमंगं ॥ २२॥ द्वावत्र श्रुतस्कन्धौ, त्रयोविंशतिरध्ययनानि, त्रयस्त्रिंशदुद्देशनकालाः, ते चैवं भवन्ति-प्रथमाध्ययने चखारो द्वितीये त्रयस्तृतीये चखारः एवं चतुर्थपञ्चमयोद्वौं द्वौ तथैकादशखेकसरकेष्वेकादशैवेति प्रथमश्रुतस्कन्धे, तथा द्वितीय श्रुतस्कन्धे सप्ताध्ययनानि तेषां सप्तैवोद्देशनकालाः, एवमेते सर्वेऽपि त्रयस्त्रिंशदिति, एतच्चाचाराङ्गाद्विगुणमङ्गं, षट्त्रिंशत्पदसहस्रपरिमाणमित्यर्थः ॥२२।। साम्प्रतं सूत्रकृताङ्गनिक्षेपानन्तरं प्रथमश्रुतस्कन्धस्य नामनिष्पननिक्षेपाभिधित्सयाऽऽहनिक्खेवो गाहाए चउविहो छबिहो य सोलससु। निक्खेवो य सुयंमि य खंधे य चउविहो होइ ॥२३॥
इहाद्यश्रुतस्कन्धस्य गाथाषोडशक इति नाम, गाथाख्यं षोडशमध्ययनं यसिन् श्रुतस्कन्धे स तथेति, तत्र गाथाया नामस्थापनाद्रव्यभावरूपश्चतुर्विधो निक्षेपः, नामस्थापने प्रसिद्धे, द्रव्यगाथा द्विधा-आगमतो नोआगमतश्च, तत्र आगमतो ज्ञाता तत्र चानुपयुक्तः 'अनुपयोगो द्रव्य'मितिकृखा, नोआगमतस्तु विधा-ज्ञशरीरद्रव्यगाथा भव्यशरीरद्रव्यगाथा ताभ्यां विनिर्मुक्ता च"सत्तद्वतरू विसमे ण से हया ताण छह णह जलया। गाहाए पच्छद्धे भेओ छट्ठोति इक्ककलो॥१॥" इत्यादिलक्षणलक्षिता पत्रपुस्तकादिन्यस्तेति, भावगाथापि द्विविधा-आगमनोआगमभेदात् , तत्राऽऽगमतोगाथापदार्थज्ञस्तत्र चोपयुक्तः, नोआगमतस्वि
दमेव गाथाख्यमध्ययनम् , आगमैकदेशत्वादस्य । षोडशकस्यापि नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकालभावभेदात् पोढा निक्षेपः, तत्र नामSH १ सप्त तरवः ( चतुर्मात्रा गणाः) अष्टमः ( गुरुः ) विषमे न ( जगणः, ) तस्याघातकास्तासां षष्ठे नहौ (चतुर्लघवः ) जो वा । गाथायाः पश्चार्धे भेदः षष्ठ |
एककल इति ॥१॥
eleseseeeeeeeeeeeeee
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 ... 859