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सूर्यसिद्धान्त:
परिधि मंस्कार करनेसे ३९।०।९ अंशादि हुई । मुजज्याको शुद्ध स्फुट परिधिसे गुणा करके ३६० से मामकरनेपर ५६ विकला शीघ्रभुजफल हुआ। कोटी. ज्याको स्फुटपरिधिसे गुणा करके ३६० से भाग करनेवर कला विकलो ३७२। २२ । हुई । शीघ्रकेन्द्र कर्कादिमें होनेसे त्रिज्या ३४३८ से फल ३७२। २२ । अलग करनेपर ३०६५। ३८ शीघ्रकोटोफल हुआ । शीघ्रकोटीफलको विकला करके वर्ग करनेपर ३३८३३१८७८४४ हुए । भुजज्याविकलाको वर्ग करनेसे ३१३६ हुए शीघ्रकोटीफलवर्गके साथ भुजज्यावर्ग मिलाकर मूल निकालनेसे १८३९३८ विकला शीघ्रकर्ण हुआ। भुजफल ५६ विकलाको त्रिज्या, ३४३८ से गुणाकरके शीघ्रकर्णद्वारा माग करनेपर ६३ विकला हुई । कला १।३ शनिका प्रयम शीघ्रफल हुमा (यही प्रथमसंस्कार है ) इसका अर्द्ध शनिमध्यमें शीघ्रकेन्द्र तुलादि होनेसे वियोग करनेपर ५। २९ । ६ । ३७ । शीघ्रकला संस्कृतमध्यशनि हुआ । शनि मन्दोच्च ७ । २६ । ३७ । २४ से शोघ्रफलाईसंस्कृतमध्य वियोग करने पर १२२७ ३० । ४७ प्रथममन्दकेन्द्र हुआ । कलाकरके २२५ से भाग करने पर १५ संख्या तुल्य ज्याग्रहण करके ज्यान्तर ११९ से भागशेष ७५ को गुणाकरके २२५ से मागकरके कला ४० । ४ हुई । यह ज्या २८५९ इसमें भिलानेसे २८९९। ४ प्रथममन्द मुजज्या हुई । इस भुजज्याको युग्मायुग्म मन्दपरिधिके अन्तर १ अंशसे गुणकरके ३४३८ त्रिज्यासे भाग करनेपर कला ५० । ३६ हुई युग्मपरिधिके हीन करनेपर ४८ । ९ । २४ शुद्ध स्फुटपरिधि हुई भुजज्याको शुद्धस्फुट मन्दपरिधिसे गुणाकरके ३६० से भाग करनेपर कला ३८७ । ४९ हुई। इनके धनुकरनेसे ३८८। २८ मन्दफल हुआ ( यह दूसरा संस्कार है) यह प्रथममन्दफलाई शैघ्याई संस्कृत मध्यशनिमें मेषादिकेन्द्रमें मिलानेसे ६।२।२०। ५१ शीघ्रार्द्ध मन्दाई संस्कृतमध्य शनि हुआ।
फिर शनिमन्दोच्च ७ । २६ । ३७ । २४ से प्रथम मन्दफल संस्कृत मध्य ६।२।२०। ५१ वियोग करनेपर १ । २४ । १६ ३३ ये हुए इसकी कला करके २२५ से भाग करने पर भागफल १४ के अनुसार ज्या २७२८ और ज्यान्तर १३१ को अवशिष्ट १०६ से गुणाकरके २२५ से भाग करके लब्ध ६१ । ४४ को ज्या २७२८ इसमें मिलानेसे २७८९ । ४४ द्वितीय मन्दभुजज्या हुई इसको ३४३८ त्रिज्यासे भाग करनेपर फल ४८ । ४१ होताहै । सो ४९ अंशसे हीन कर. नेसे ४८ । ११ । १९ द्वितीय शुद्ध मन्द परिधि हुई । द्वितीय मन्दभुजज्या २७८९। ४४ को इससे गुणाकरके ३६० से भाग करनेपर कला ३७३ । २६ इसके धनु कर. नेसे ३७४ । ५ दूसरा मन्दफल हुआ । ( यही तीसरा संस्कार है) यह शनिमध्यमें
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