Book Title: Sursundari Chariyam Author(s): Dhaneshwarmuni, Mahayashashreeji Publisher: Omkar Gyanmandir SuratPage 19
________________ पृष्ठाङ्कः विषय २९७ - ३४० अष्टमः परिच्छेदः २९७ नभोवाहनसपरिवारागमनस्य दूरात् विलोकनम् । २९८ कनकमालाभयविह्वलताक्रन्दनादि । ३०० चित्रवेगेन तत्संधीरतापादनम् ३०२ नभोवाहनसमापतन-चित्रवेगनिर्भर्त्सन-आग्नेयादिबाणवर्षणम् । ३०६ नागपाशाह्वान-तत्कृतविषोर्मिसञ्जातचित्रवेगपीडामूर्च्छनम् ३०८ चित्रवेगापत्तित्राणादि । ३११ देवस्य पुनरागमनम् - पूर्वभवसम्बन्धनम् ।। ३१६ सुधर्मप्रवज्या, विविधदेशे-विहरणम् । ३१८ सूरेः पूर्वनगाँ-वर्षारात्रम् - धनवाहनप्रतिबोधायोपदेशदानम् । ३२१ धनवाहनो महिलासक्तो धर्मं कर्तुमशक्यम् । ३२२ स्त्रीचरित्रवर्णनम् तथापि स्वमहिलायां दृढरागप्रतिबन्धः । ३२५ सस्त्रीकधनवाहनस्य सन्धापूर्वं दीक्षाग्रहणम् । ३२८ सुलोचना-कनकरथ-सपत्न्याकृतो मतिसंमोहः - तेन देशान्तरे भ्रमणम् - भगिनीसाध्वीयुगलेनावलोकनम् । ३३० गुरुसमीपे तयोरानयनम् । गुरुणा स्वस्थकरणम् । ३३२ प्रव्रज्याग्रहणम् - देवभवेगमनम् इति परस्पर सम्बन्धकथनम् । ३३९ ३८० नवमः परिच्छेदः ३४० देवस्य धनवाहनमुन्युपसर्गनिवारणम् ३४१ मुनिकैवल्योत्पत्ति-देशना-उपसर्गविधायकसुरपूर्ववैरवृतान्तकथा-वैरं स्मरन् वधार्थेऽऽगमनम् । ३४९ देवस्य-स्वागामिकभवसम्बन्धीप्रश्नकेवलीप्रतिकथनम् । ३५१ चित्रवेगस्य स्वभार्याया नभोवाहनकृतापहारपश्चाद्भूतवृतान्तप्रश्नः । देवस्योत्तरम् ३५७ कनकमालां नभोवाहनादपहृत्य देवेन चित्रवेगाय समर्पणम् ३५९ चित्रवेगस्य कृतज्ञतानिवेदनम् - देवस्य वरग्रहणायाग्रहः ३६१ चित्रवेगाय विद्याधराधिपतित्वदानम् . देवान्तर्धानम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 ... 702