Book Title: Surpriyamuni Katha
Author(s): Jain Bhaskaroday Mudranalay
Publisher: Jain Bhaskaroday Mudranalay
View full book text
________________ Scanned by CamScanner * सुरप्रिय चरित्रम् // 12 // // 12 // HeDEOHIDEd0e0a[a]60*TA राज्यं त्यक्त्वा गुरोः पाश्वे / परिव्रज्यामपाददे // 18 // चारित्रं निरतीचारं। सुचिरं परिपाल्य सः॥ समुत्पन्नः सुरः कल्पे / पंचमे परमर्द्धिकः // 19 // यतः–एगदिवसंपि जीवो / पवजमुवागओ अनन्नमणो // जइवि न पावइ मुक्खं / अवस्स वेमाणिओ होइ / / 20 // प्रतिबोध्य चिरं भव्यान् / भूतलेऽनुक्रमेण सः // सुरप्रियोऽपि निःशेष-क्षीणकर्मा शिवं ययौ // 21 // त्रयाणामपि जीवाना-मात्मनिंदा फलप्रदा // अभृदित्थं ततः सैव / कर्तव्या स्वस्तुतिन च // 22 // इति वीरवचः श्रुत्वा / गोतमो | हर्षप्ररितः // सार्ध भगवता तेन // विजहार वसंधरां // 23 // श्रीमत्तपगणगगनां-गणदिनमणिविजयसेनसूरीणां // शिष्याणुना कथेयं / विनिर्मिता कनककुशलेन // 24 // ऋतुभूतरसेंदुमिते (1656) / वर्षे स्वान्योपकारिणी चैषा // हालोवाटकनाम्नि / ग्रामे लिखिता शिवाय स्तात् // 25 // // इति श्रीसुरप्रियकथा समाप्ता // श्रीरस्तु // DHODE:HReDEODEHDBHOPान

Page Navigation
1 ... 11 12 13