Book Title: Suktmuktavali
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Bhupendrasuri Jain Sahitya Samiti

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Page 12
________________ अशुखम् वदापि पर " प. प्रष्ट पति कदापि शृगालो दा:स्थकपाटे बंधमाश्चकार श्रृगालो पृष्ठ पंक्ति शुभम " ५। करोषि दर्धच्छिन्नो १ २ | दक्षिणदिक्षु अशुखम् करोपि दधच्छिन्नो दक्षिणाविक्षु १४४ १३. विरमत खेटक खेटक, मात, द्वास्थकपाटे बभामाश्च विरमध्वम् मापृष्ठ धनं प्रसोप्याव: मो देव । जे करे मापृच्छय धनं मसोप्यावहे मो देव। प्रणामो एतास्या सुदर्शन भ्रातृ म करे सुशन श सर्व प्रमाणो RE १९३ २ १५ संवर संबर पताश्यज बमत वमन ईशी इहशी जात जात, - -- -

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