Book Title: Sudharma Swami no Ras
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ जिगनिदीक्षा एकादश वर्या उपाध्याय ते वद्या भय । च्यार वेद चतुर ते भाइ । स्मृति पाठतिपाठिंगणइ ॥ ८ ॥ एणइ अवसर श्रीजिनमहावीर । केवलज्ञान पामइ गंभीर । तीर्थभूमिका वंदन करी । चालइ जिहां छइ पावापुरी || ९ || कनककमलि पग मुकइ देव । चउसठि इंद्र वाटि करइ सेव । अजुआलु करवा जिनवीर । बार जोयण आवइ तव धीर ॥ १० ॥ अनंतज्ञान तणा भंडार । जिनवर जाणइ लाभ अपार । लाभ जाणी तीर्थंकर रइ । देव दानव मानव [गह ] गहि ॥ ११ ॥ वस्तु वीर जिनवर वीर जिनवर करूं परिणाम 79 सोहम्मस्वामी गुणकरु धम्मिल तात भद्दिला मात कोलाग संनिवेसि हवु वीरपाटि गणधर विक्षात ॥ पावाई सोमिल द्विज जिगनि ते डाव जाम वीर वर केवल लही लाभि आवइ ताम ॥ १२ ॥ ढाल २ गौतमस्वामिना रासनुं ढाल । जम सहिकारि कोय ० १ समोसरण तिहां देवे करीइ । सिर उपरि छत्रत्रय धरी । सुरनर कोडी तिहीं मलइ । देव दुंदुभिनुं नाद मनोहर । सवे विप्र सुणइ तव सुंदर । जाणइ देवा आम वलइ ॥ १३ ॥ देव जिगनि मूंकीनइ जाइ । विप्र सवेनइ कोप ज थाइ । नावि देवा तेह कसिं । सुणीआ आव्या केवलज्ञानी वीर जिनेशर मोटा ध्यानी । देवा जाइ तेणमसिं ॥ १४ ॥ इंदभूई महां इम चितइ । सवजाण को मझ जयवंत | इंद्रजालि देव मोहीइ ए । जाणपणुं हु हंवडा यलुं । 'जईनइ पूठा ( पूछा ) जोईए ए ॥ १५ ॥ १. एक पंक्ति खूटती जणाय छे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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