Book Title: Sudharma Swami no Ras
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मस्वामीनो रास ॥ सं. साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्री भूमिका : गौतमस्वामीना गुणकीर्तननी कृतिओ प्रसिद्ध छे, पण भगवान श्रीमहावीरस्वामीना पांचमा पट्टधर शिष्य सुधर्मस्वामीना गुणो वर्णवती कृति भाग्ये ज जोवा मळे छे: खास करीने गुजरातीमां ६ ढाल अने ७२ कडीमां पथरायेली प्रस्तुत रासरचना , आ संजोगोमां बहु महत्त्वपूर्ण गणाय. आ रास, तेना अंतभागमां वर्णवाया मुजब, विधिपक्ष(अंचल)गच्छना श्रीपुण्यरत्नसूरिए पेटलाद्र (पेटलाद)मां, सं. १६४० मां रचेल छे. आनी एक मात्र प्रति भावनगरस्थ श्रीआत्मानन्दसभासत्क पं. भक्तिविजयग्रंथसंग्रहमांथी उपलब्ध थतां, तेनुं संपादन करीने ते अहीं आपवामां आवेल छे. संपादननो आ प्रथम ज प्रयास होवाथी क्षतिओ रही होय तो विद्वानो दरगुजर करशे तथा सुधारशे तेवी आशा छे. वीरजिननई करुं प्रणाम । सरसति भति आपु अभिराम । गाउं गणहर सोहम्पस्वामि । जाइ पाप जस लीधइ नामि ॥१॥ गणधर सघला गुणना नीला । एक एकथी छइ अति भ[ला] । पणि आगम जे वरतइ सार । ते सोहम्मस्वामी उपगार ।।२।। हवडा वरतई जे अणगार ! ते सवि सोहम्मनु परवार । असी वात मि आगमि लही । रचुं रास रस आणी सही ॥३॥ जंबुदीव थाली आकार | लाख जोयण तेह- वस्तार । दक्षण भरति मगधदेस । वारु कोलाग सनिवेस ॥ ४॥ धम्मिल विप्र तणु तिहां वास । भद्दिला नारी जाणउ तास । नंदन सोहम्म गुणतुं निलु । चऊद वद्याइं वी(दी) पइ भलुं ॥ ५ ॥ प(पू?)छइ पाठ पंडित सइ पाव । शास्त्रवादि नहीं खलखांव । सकल शास्त्र संकेतह कहिइ । संधे एक ते मन महांवई ।। ६ ॥ मध्यपापानारी छइ एक । सोमिल विप्र वसइ सविवेक । तेहनइ ज्यागि मलीउ लोक ! बाभणना तिहां तेड्या थोक ।। ७ ।। १. पापानगरी। Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिगनिदीक्षा एकादश वर्या उपाध्याय ते वद्या भय । च्यार वेद चतुर ते भाइ । स्मृति पाठतिपाठिंगणइ ॥ ८ ॥ एणइ अवसर श्रीजिनमहावीर । केवलज्ञान पामइ गंभीर । तीर्थभूमिका वंदन करी । चालइ जिहां छइ पावापुरी || ९ || कनककमलि पग मुकइ देव । चउसठि इंद्र वाटि करइ सेव । अजुआलु करवा जिनवीर । बार जोयण आवइ तव धीर ॥ १० ॥ अनंतज्ञान तणा भंडार । जिनवर जाणइ लाभ अपार । लाभ जाणी तीर्थंकर रइ । देव दानव मानव [गह ] गहि ॥ ११ ॥ वस्तु वीर जिनवर वीर जिनवर करूं परिणाम 79 सोहम्मस्वामी गुणकरु धम्मिल तात भद्दिला मात कोलाग संनिवेसि हवु वीरपाटि गणधर विक्षात ॥ पावाई सोमिल द्विज जिगनि ते डाव जाम वीर वर केवल लही लाभि आवइ ताम ॥ १२ ॥ ढाल २ गौतमस्वामिना रासनुं ढाल । जम सहिकारि कोय ० १ समोसरण तिहां देवे करीइ । सिर उपरि छत्रत्रय धरी । सुरनर कोडी तिहीं मलइ । देव दुंदुभिनुं नाद मनोहर । सवे विप्र सुणइ तव सुंदर । जाणइ देवा आम वलइ ॥ १३ ॥ देव जिगनि मूंकीनइ जाइ । विप्र सवेनइ कोप ज थाइ । नावि देवा तेह कसिं । सुणीआ आव्या केवलज्ञानी वीर जिनेशर मोटा ध्यानी । देवा जाइ तेणमसिं ॥ १४ ॥ इंदभूई महां इम चितइ । सवजाण को मझ जयवंत | इंद्रजालि देव मोहीइ ए । जाणपणुं हु हंवडा यलुं । 'जईनइ पूठा ( पूछा ) जोईए ए ॥ १५ ॥ १. एक पंक्ति खूटती जणाय छे। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 इंद्रभूति आव्यउ[ गह| गहिंतु । जिनवर महिमाने अणसहितु । नाम लाधइ चितवन कीउए । नाम गोत्र मझ सहुय वखाणइ । मन .. संधे जु माहरु जाणइ । तु हु एणि वसि क्रीउए ॥ १६ ॥ . वेदपदि जिन संधे टालइ । लि दिक्षा सई पाचसिउं पालइ । अमरख बीजु मनि करइ । आविउ तव टालिउ संदेह । अनुकमि त्रीजु चुथु जेह । संघे रहित संयमधरए || १७ ।। च्यारसुए पाते संयम वरीया । सोहम्म माहूण कोपि भरीया । आवइ वेगि समोसरणि । कोडि गमे ते देवा देखइ । रिद्धि सिद्धि] पेखइ ण लेखइ । कुसुमवृष्टि देखइ धरणि ।। १८ ।। वीर सुधर्म कहींय बोलावइ । अगनिवेसायण गोत्र मलावइ । किम मुनिधरो (?) अथवा माहरु नाम विक्षात । सह को जाणइ मह अवदात । मन चिंतन कहि मुनिपवरो ॥१९ ।। तुं जाणइं आणइ भवि जेह । परवि तेहवु हुसिइ तेह । इहां नर ते नर हसिइ । नारी हसिइ ते नारी था जासि । पशुय पुशयपणइ पणि जासि । नहि तु जारि जारि कसिइं ॥ २० ।। वेद पदनुं अर्थ विचारि । ताहरु संधे तुंह निवारइ । एकइ जनिर्मि वय फरइ । नर मरीनई देवइ थावइ । देव चवीनइं नरभवि आवइ । कर्म विचित्री इम करि ।। २१ ॥ नहीं तु दया दान कां दीजइ । तपि करी तनुं कां सोसीजइ । संधेरहित साहम्म हवा । मन वात ते मुनिपति भासी । सात 'धात ते धम्मित्रासी । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 81 जिनवाणी अमृत लवा ।। २२ ।। पंचसयासिउं संयम लेवइ । जिनपति ततक्षण त्रिपदी देवइ । चउदपूरव गणधर कहिइ । घडीमांहिं [ पूरव] ते क्रोधां । मुनिवरनइ पणि भणवा दीधां । वद्यावंत विचार लहिइ ।। २३ ।। वस्तु समोसरणिं समोसरणिं मलइ बहु देव । अमरख आणी आवीइ इंद्रभूति जिनवर बोलावइ । अनुकरमि गणधर सवे जिन समीविं संयम पावइ । त्रिपदी तीर्थंकर कहइ विरचइ पूरव सार । जिन पासई वासि वसइ वरतिउ जयजयकार ॥ २४ ॥ ढाल - ३ (दशानभद्रना रासनुं पहिलं ढाल । वीर जिनेशर पइ नमीए० ए ढाल II) वीर जिनेशर पय नमइए । गणधर गणधर वर अग्यार के । महियलिं हीडइ परवर्या ए । बूझवइ बूझवइ वरण अढार के । वीर जिनेशर पय नमइए ॥ २५ ॥ त्रुटक पय नमइ मुनिवर चऊद सहस सहस छत्रीस पुवता (?) । सुर असुर नरवइ चरण सेवइ वखाणंइ बहुसं वृता । बहुतिरि वरसनुं आयु पाली करम टाली सिद्धि थया । कात्तिक वदिनी अमावस्या पावाई शवपुरि गया ।। २६ ।। सोहम्म गणहर पांचमाइ वीरसइ वीरनइ पाटि वखाणि के । जाणि जगगुरु गुणिनिलु ए ज्ञान ए ज्ञान ए तणी ए खाणि के । सोहम गणधर पांचमा ए ॥२७॥ पांचमु गुणधर सुंदर सुखकर गुणमंदिर सुरतरु ग्रामानुग्रामिं व्याहर करता फरता देसदेसांतरु । त्रू. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रू० त्रू. प्रणव सहित विक्रयलबधी केवलनाणी तिहां बहू घणा आभिणिबोहिणाणी सुयणाणी छइ सहू । बीजबुद्धी कुटुबुद्धी पयाणुसारिणोवरा मणबलीया वयबलीया कायबलीया सुयधरा ॥ ३० ॥ मणपज्जवणाणी अछइ ए संभिण्णरसोईया केवि के । व्यद्याहर मुनीशरूप चारण चारण दोय मलेवि के । मणपज्जवणाणी अछइ ए ।। ३९ ।। अछइ गांणी आमोसहीया विप्पोसहीया सव्वासहीया सुरवरा । नाणबलीया दश[न] बलीया चरितबलीया दुखहरा 1 खीरासवीया महूयासवीया सप्पीया सवीया वरा ॥३२ अखीणमाहणसीया मुनि ए तपीया य तपीया य तिनुं परवार के । बार भेदे तप करइ ए ध्यानीय ध्यानीय छइ मनोहार के । अखीणमाहणसीया मुनि ए ।। ३३ ।। त्रू० राजग्रहए नयर पुरसरि आवइ सोहम्म मलपता पांचसइ अणगार साथि दया वाणी जलपतां ॥ २८ ॥ प्रणव सहित नमो यती ए अवधि अवधि नाणीय अनेक के रिजूमई विफू (पु) लमई भली ए । पूव पूरवधर सववेक के । प्रणव सहित नमो यती ए ॥ २९ ॥ 82 To १. एक पंक्ति छूटे छे । मुनिवरा चुथ छठ अट्ठम दसम दुवाल समर धरा । मासखमण एक दु ति चु पंच छ परमुखकरा आंबिल नीवी एकासणीया अंत पंत आहरी यती । दोष रहिता समतिहता (?) पाप पंक नहीं रती ॥ ३४ ॥ एहवा मुनिवर वांदीइ ए समरीइ समरीइ रातिनई दीस के । सोहम्मस्वामि तणा यती ए संपति संपति हुइ जगीस कि । एहवा मुनिवर वांदीइ ए ।। ३५ ।। वांदीइ मुनिवर तपि सूरा लबद्धि पूरा जे अछ‍ २. तप विशेषनां नामो । . - Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 83 नित नित नित नमता जाप जपतां दुख दुरगति नहीं पछइ । परवार पोढइ नहींय थोडइ सुधर्मस्वामी परवया राजग्रह वर नगर परसरि आवीनइ समोसर्या ॥ ३६ ।। वस्तु वरस बहुतिरि वरस बहुतिरि वीर आयु । पालीनइं शवपुरि गया सोहम्मस्वामि जिन पाटि थापिउ ! महीलि महिमां वस्तरिउ वणि त्रिभुवनि जस व्यापिउ । बहु परवारिं परवर्या आवइ राजगृहिं जिहा । जन सघला वंदन करइ जय जय वरतइ तिहां ।। ३७ ॥ ढाल - ४ (एकवीसानु ढाल । आविउ आविउ रे आविउ जल०) । ए जाण्या ए जाण्या रे सोहम्मस्वामी समोसऱ्या । लोक आवइ रे परवारिं बहु परवर्या । अनव्रती रे बहूला आवी अणुसर्या । जंबूकुयर रे बंदनि पहूता गुणि भर्या || ३८. ।। गुणभऱ्या सोहम्मस्वामि वंदइ सुणंइ देसन गुरुतणी मधुरवाणी अमीयसमाणी हित आणी कहि घणी संसार सारइ सार पातु धर्माजनु कीइ क्रोध माया मान मूंकी लोभ थोभ न दीजीइ ॥ ३९ ॥ जाणु जाणु संभव दोहिलु । तेणइ कीजइ रे जिनधर्म ते अति सोहिलु । जिम छुटइ रे कर्म कठोर ते जीवडु । सघलांमां रे महाव्रत धर्म ते छ (छे) वडु ।। ४० ॥ J० वडु महाव्रत धर्म जाणी जंबू वाणा(णी) ते ग्रहि आदेस सामी अझे पामी चरित्र लेशिउं इम कहि । Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84 शीलव्रत ज स्वामी दीजइ संबल लीजइ एतलुं शील लेइ जम्बु जाइ सुख थाइ अति भलु ।। ४१ ।। आवइ आवइ रे आवइ थ...... कुण गणइ । मात तातनइ रे मझ दीक्षा दिउ इम भणइ । जंबू बोलइ रे जाणीनई जंतु को हणइ ॥ ४२ ।। ..........जाणी इम वाणी लेइ रहि आठ कन्या तम्हे परणु मात तात ते इम कहि । अह्मे परणी चारित्र ....... उं तु सही हा ज पाडी कहि माडी हरख पहुचाडउ वही ॥ ४३ ।। परणइ परणइ रे कन्या आठ एकइ दिनि । मनि जाणइ रे दिन ऊगि जाउं वनि ।। रयणीइ रे कन्या आठइ बूझवी । जंबूनई रे कोडि नवाणु रिद्धि हवी ।। ४४ ॥ J० हवी रिद्धि नीमसधि प्रभावु चोरा भली आवीउ निद्रा देतु धन लेतु जंबूइं बोलावीउ । पंचसइ चोरा थंभ्या थोरा कहि प्रभवु सुणि धणी बिय वद्या मुझ लेई एक आपि न तुझ तणी ? ।।४५ ।। कहि जंबूरे मुझ कुवद्या ते कसी। जिनधर्मनी रे वात मोरइ हईइ वसी । प्रभवु रे पांचसई चोरशुं तव वलिउं । चोरी हत्या रे पाप थकी ते तां टलिउ ।। ४६ ॥ J० टलइ पापथी आप आपि माय बाप चारित्र धरइ कन्या आठना माय बाप नारी पणि संयम वरइ । पांचसइ चोर सहित प्रभवु जंबू साथि संयम लीइ पांचसइ अठावीसनई सोहम्मस्वामि चारित्र दीइ ।। ४७ ।। १. एक पंक्ति खूटती जणाय छे, अथवा ३ पंक्तिनी ज कडी हशे ? | Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 85 वस्तु लीइ दिक्षा लीइ दिक्षा कुंयर जंबू आठ कन्या पोता तणी । माय बाप पणि तस जाणुं । पांचसयाशिउं प्रभवु ऋषभदत्त धारणि वखाणुं । सोहम्म स्वामी स्वामी स्वहथिं संयम दीइ मुनीस । पांचसया ऊपरि वली व्रत लि अठावीस ।। ४८ ।। ढाल - ५ राग-देसाख (ढाल : आषाढभूतिना रासनुं ।) मारगि अति उतावलु ए सोहम्म स्वामी वहिरता । बूझवइ बहूजीव दया दान ते भाखता । तपीया अती ॥ ४९ ॥ आंचली । सोहम्म स्वामी मुनिवरु गुणतुं भंडार जस सोभागि दीपता पंचमा गणधार ॥ ५० ॥ सो०। तेजिं दिनकर किंकरु समचुरस संठाण । वज्रऋषभ संघयण छइ सुस्वर करइ वखाण || ५१ ।। सो० रूपि रति हारीउ वदनि अरवंदा वाणी अमृत आगली सुख सोभा कंद(दा) ॥ ५२ ॥ सो० । अचल मेरु तणी परि सायर पि गंभीर । नीरदनी परि गाजत गिरुउ वडवीर ॥५३ ॥ सो० । गाम नगर पुर पाटणि कांइ नहीं पडिबंध । गज गति हीडइ मलपतु रूयडा दो खंध ॥ ५४ ॥ सो० कोध मान माया नहीं नहीं लोभ लगार । रिंदय छइ निरमल जल समुं चारुप (वारु ए) अणगार ।। ५५ ।।सो० शमरस सागर सुंदरु दयावंत अपार । कूरमनी परि गोपव्यां सवे इंद्री सार ॥ ५६ ॥ सो० सात हाथ देह भलु कनकवर्ण अपार । मुनिवर वंदि परवऱ्या महीयल करइ विहार ।। ५७ ।। सो० Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 86 धर्मध्यानमांहि झीलता आविडं शुकल ध्यान । करम कऱ्यां ते पातलां पाम्या केवलज्ञान ॥ ५८ ॥ सो० केवल स्वामी जव लहि आवइ सुरनर कोडि । केवल महुछव तव कर रहि दो करजोडि ॥ ५९ ॥ सो० वस्तु सोहम्मस्वामी सोहम्मस्वामी महीयलि विचरइ । भव्यजीवन बूझवर गामि नगरि परवऱ्या चालइ । अणुव्रत गुणव्रत शीलव्रत महाव्रत तप विवध आलइ । शुक्लध्यान ध्यातां थकां पामइ केवलज्ञान । इंद्रादिक महुछव करइ ध्याइ जिननुं ध्यान ॥ ६० ॥ ढाल ढाल - वधावानु । सोहम्मस्वामी गणधरु केवलज्ञानी सार । — ६ संघे टालइ जनतणा जननुं रे छइ ए आधार के ॥ ६१ ॥ आंचली सोहम्म सामी वां वांदइ रे सुरनरना कोडि कि । वांदइ रे मुनिवर करजोडिके । सोह० लबधि अठावीसिं भरिउ परवरिंउ बहु परवार । जगमाहिं नाम ते राखीउं तारीया रे संसार अपार के ॥ ६२ ॥ सो० वरस पंचास घरि वश्या छदमस्त बितालीस । आठ वरस हऊआ केवला व्याप्या रे जंबूयु मुनीस के || ६३ || सोह० राजग्रहि अणसण करिउं मास दिवस जव थाइ । शेष करम ते क्षे करी शवपुरि स्वामि जाइ के ॥ ६४ ॥ सोह० परमानंद आनंदमय अनंत सुखमइला । काल जासि जु अतिघणुं तुहि रे नहीं हुइ खीण के || ६५ ॥ सो० रिद्धि वृद्धिनी बहु सिद्धि हुइ भइ वारु यस । मंगलमाल ते पामीर हुइ रे घरि लीलविलास के || ६६ || सोह० प्रहि ऊठीनइ गाईइ पाईइ परिमाणंद | Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 87 आधि व्याधि दूरिं टलइ तेहनई रे हुइ सुखनुं कंदकि || ६७ || सोह० रूडां काज ते कीजीई गणी विशेषि एह । परवार वारू वस्तरइ सजनशुं रे पणि वाधइ नेह के || ६८ || सोह० चिंता टलइ रोग उपसमइ न नडइ वइरी नास । नरनारी नित नित गणउ सोभागी रे सोहम्मनु रास के ॥ ६९ ॥ सोह० सवंत सोल ते जाणजिउ च्यालीसु निरधार । फागुण सुदि तेरसि भली नक्षत्र रे पुष्पनई गुरुवार के || ७० || सोह० विविधपक्ष गछि जाणी श्रीसुमतिसागरसूरिंद | श्रीगजसागरसूरि तस तणइ पाटि रे ऊदयुय दिणंद के ।। ७१ ।। सो० तास सीस पेटलाद्रमिं छड़ पुण्यरत्नसूरि । ऋषभदेव पसाउलि हुइ रे आनंद भरपूरके ॥ ७२ ॥ सोहम्मस्वामी वांदु वांदइ रे सुरनरनी कोडि के । वांदइ रे मुनिव्वर करजोडि के । सोहम्मस्वामी वांदुं ॥ इति श्रीसुधर्म्मस्वामिनुं रास संपूर्णः ॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द खलखांव संधे ज्यागि जिगनि दीक्षा अमरख समोसरणि त्रिपदी शवपुरी रिजूमई विफुलमई पूरव पूरवधर विकयलबधी मणबलीया वयबलीया कठिन शब्दोनो कोश शब्दार्थ ? संदेह यागमां यज्ञदीक्षा अमर्ष 882 आभिणिबोहिणाणी मतिज्ञानी सुयणाणी श्रुतज्ञानी बीयबुद्धी बीजबुद्धि कुबुद्धी पयाणुसारिणो पूर्व (जैनागम) पूर्वधर (आगमना ज्ञाता) वैक्रियलब्धि इच्छित रूप धरवानी शक्ति कोष्ठबुद्धि पदानुसारी (त्रणे विशिष्ट ज्ञान लब्धिओ, ते धरावता मुनिओ) मनोबली वचनबली कड़ी ६ समवसरणे, तीर्थंकरनी धर्मसभामा त्रण पदो, जे तीर्थंकरो गणधरोने आपे छे. शिवपुरी - मोक्ष ऋजुमति (पांच ज्ञान पैकी चोथा २९ ज्ञान्ना बे प्रकारो) विपुलमति ६,१६.१७,२१,२२,६१ ७ ८ १७, २४ १८,२४ २४ ३६, ३७ २९ २९ २९ ३० ३० ३० ३० ३० ३० ३० ३० Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 89 कायबलीया कायबली मणपज्जवनाणी मनःपर्यव नामे ज्ञानवाला संभिण्णासोईया संभिन्न श्रोतस् लब्धिवाला चारण ते नामे लब्धिवाला आमो सहीया (त्रणे विशिष्ट रोगोपशामक विप्पोसहीया लब्धिओ, तेने वरेला सव्वोसहीया . मुनिओ) नाणबलीया ज्ञानबली दसणबलीया दर्शनबली चारित्तबलीया चारित्रबली खीरासवीया क्षीरास्रवलब्धिवंत महूयासवीया मध्वास्रवलब्धिवंत(दूध-मध-घीना 32 जेवी तृप्ति आपे तेवी वाणी वाला) सप्पीयासवीया सर्पिरास्त्रवलब्धिवंत अखीणमहाणसीया अक्षीणमहाणस (अक्षयपात्र) लब्धिवाला अंत पंत आहरी तुच्छ - वधेल आहार लेनारा समोसर्या पधार्या नीसधि निशीथे - रात्रे समचुरस संठाण समचतुरस्त्र संस्थान, शरीराकृतिनो एक अतिविशिष्ट प्रकार वज्रऋषभसंघयण अतिविशिष्ट दृढ अस्थिरचना / पडिबंध प्रतिबंध-आसक्ति हृदय रिंदय