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जिनवाणी अमृत लवा ।। २२ ।। पंचसयासिउं संयम लेवइ । जिनपति ततक्षण त्रिपदी देवइ । चउदपूरव गणधर कहिइ । घडीमांहिं [ पूरव] ते क्रोधां । मुनिवरनइ पणि भणवा दीधां । वद्यावंत विचार लहिइ ।। २३ ।।
वस्तु समोसरणिं समोसरणिं मलइ बहु देव । अमरख आणी आवीइ इंद्रभूति जिनवर बोलावइ । अनुकरमि गणधर सवे जिन समीविं संयम पावइ । त्रिपदी तीर्थंकर कहइ विरचइ पूरव सार । जिन पासई वासि वसइ वरतिउ जयजयकार ॥ २४ ॥
ढाल - ३ (दशानभद्रना रासनुं पहिलं ढाल । वीर जिनेशर पइ नमीए० ए ढाल II) वीर जिनेशर पय नमइए । गणधर गणधर वर अग्यार के । महियलिं हीडइ परवर्या ए । बूझवइ बूझवइ वरण अढार के । वीर जिनेशर पय नमइए ॥ २५ ॥
त्रुटक पय नमइ मुनिवर चऊद सहस सहस छत्रीस पुवता (?) । सुर असुर नरवइ चरण सेवइ वखाणंइ बहुसं वृता । बहुतिरि वरसनुं आयु पाली करम टाली सिद्धि थया । कात्तिक वदिनी अमावस्या पावाई शवपुरि गया ।। २६ ।। सोहम्म गणहर पांचमाइ वीरसइ वीरनइ पाटि वखाणि के । जाणि जगगुरु गुणिनिलु ए ज्ञान ए ज्ञान ए तणी ए खाणि के । सोहम गणधर पांचमा ए ॥२७॥ पांचमु गुणधर सुंदर सुखकर गुणमंदिर सुरतरु ग्रामानुग्रामिं व्याहर करता फरता देसदेसांतरु ।
त्रू.
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