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धर्मध्यानमांहि झीलता आविडं शुकल ध्यान ।
करम कऱ्यां ते पातलां पाम्या केवलज्ञान ॥ ५८ ॥ सो० केवल स्वामी जव लहि आवइ सुरनर कोडि । केवल महुछव तव कर रहि दो करजोडि ॥ ५९ ॥ सो०
वस्तु सोहम्मस्वामी सोहम्मस्वामी महीयलि विचरइ । भव्यजीवन बूझवर गामि नगरि परवऱ्या चालइ । अणुव्रत गुणव्रत शीलव्रत महाव्रत तप विवध आलइ । शुक्लध्यान ध्यातां थकां पामइ केवलज्ञान । इंद्रादिक महुछव करइ ध्याइ जिननुं ध्यान ॥ ६० ॥
ढाल
ढाल - वधावानु ।
सोहम्मस्वामी गणधरु केवलज्ञानी सार ।
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संघे टालइ जनतणा जननुं रे छइ ए आधार के ॥ ६१ ॥ आंचली सोहम्म सामी वां वांदइ रे सुरनरना कोडि कि ।
वांदइ रे मुनिवर करजोडिके । सोह०
लबधि अठावीसिं भरिउ परवरिंउ बहु परवार ।
जगमाहिं नाम ते राखीउं तारीया रे संसार अपार के ॥ ६२ ॥ सो०
वरस पंचास घरि वश्या छदमस्त बितालीस ।
आठ वरस हऊआ केवला व्याप्या रे जंबूयु मुनीस के || ६३ || सोह० राजग्रहि अणसण करिउं मास दिवस जव थाइ ।
शेष करम ते क्षे करी शवपुरि स्वामि जाइ के ॥ ६४ ॥ सोह०
परमानंद आनंदमय अनंत सुखमइला ।
काल जासि जु अतिघणुं तुहि रे नहीं हुइ खीण के || ६५ ॥ सो०
रिद्धि वृद्धिनी बहु सिद्धि हुइ भइ वारु यस ।
मंगलमाल ते पामीर हुइ रे घरि लीलविलास के || ६६ || सोह० प्रहि ऊठीनइ गाईइ पाईइ परिमाणंद |
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