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आधि व्याधि दूरिं टलइ तेहनई रे हुइ सुखनुं कंदकि || ६७ || सोह० रूडां काज ते कीजीई गणी विशेषि एह ।
परवार वारू वस्तरइ सजनशुं रे पणि वाधइ नेह के || ६८ || सोह० चिंता टलइ रोग उपसमइ न नडइ वइरी नास ।
नरनारी नित नित गणउ सोभागी रे सोहम्मनु रास के ॥ ६९ ॥ सोह० सवंत सोल ते जाणजिउ च्यालीसु निरधार ।
फागुण सुदि तेरसि भली नक्षत्र रे पुष्पनई गुरुवार के || ७० || सोह० विविधपक्ष गछि जाणी श्रीसुमतिसागरसूरिंद |
श्रीगजसागरसूरि तस तणइ पाटि रे ऊदयुय दिणंद के ।। ७१ ।। सो० तास सीस पेटलाद्रमिं छड़ पुण्यरत्नसूरि ।
ऋषभदेव पसाउलि हुइ रे आनंद भरपूरके ॥ ७२ ॥ सोहम्मस्वामी वांदु वांदइ रे सुरनरनी कोडि के । वांदइ रे मुनिव्वर करजोडि के । सोहम्मस्वामी वांदुं ॥ इति श्रीसुधर्म्मस्वामिनुं रास संपूर्णः ॥
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