Book Title: Sudharma Swami no Ras Author(s): Diptipragnashreeji Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ 83 नित नित नित नमता जाप जपतां दुख दुरगति नहीं पछइ । परवार पोढइ नहींय थोडइ सुधर्मस्वामी परवया राजग्रह वर नगर परसरि आवीनइ समोसर्या ॥ ३६ ।। वस्तु वरस बहुतिरि वरस बहुतिरि वीर आयु । पालीनइं शवपुरि गया सोहम्मस्वामि जिन पाटि थापिउ ! महीलि महिमां वस्तरिउ वणि त्रिभुवनि जस व्यापिउ । बहु परवारिं परवर्या आवइ राजगृहिं जिहा । जन सघला वंदन करइ जय जय वरतइ तिहां ।। ३७ ॥ ढाल - ४ (एकवीसानु ढाल । आविउ आविउ रे आविउ जल०) । ए जाण्या ए जाण्या रे सोहम्मस्वामी समोसऱ्या । लोक आवइ रे परवारिं बहु परवर्या । अनव्रती रे बहूला आवी अणुसर्या । जंबूकुयर रे बंदनि पहूता गुणि भर्या || ३८. ।। गुणभऱ्या सोहम्मस्वामि वंदइ सुणंइ देसन गुरुतणी मधुरवाणी अमीयसमाणी हित आणी कहि घणी संसार सारइ सार पातु धर्माजनु कीइ क्रोध माया मान मूंकी लोभ थोभ न दीजीइ ॥ ३९ ॥ जाणु जाणु संभव दोहिलु । तेणइ कीजइ रे जिनधर्म ते अति सोहिलु । जिम छुटइ रे कर्म कठोर ते जीवडु । सघलांमां रे महाव्रत धर्म ते छ (छे) वडु ।। ४० ॥ J० वडु महाव्रत धर्म जाणी जंबू वाणा(णी) ते ग्रहि आदेस सामी अझे पामी चरित्र लेशिउं इम कहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12