Book Title: Sudharma Swami no Ras
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 9
________________ 86 धर्मध्यानमांहि झीलता आविडं शुकल ध्यान । करम कऱ्यां ते पातलां पाम्या केवलज्ञान ॥ ५८ ॥ सो० केवल स्वामी जव लहि आवइ सुरनर कोडि । केवल महुछव तव कर रहि दो करजोडि ॥ ५९ ॥ सो० वस्तु सोहम्मस्वामी सोहम्मस्वामी महीयलि विचरइ । भव्यजीवन बूझवर गामि नगरि परवऱ्या चालइ । अणुव्रत गुणव्रत शीलव्रत महाव्रत तप विवध आलइ । शुक्लध्यान ध्यातां थकां पामइ केवलज्ञान । इंद्रादिक महुछव करइ ध्याइ जिननुं ध्यान ॥ ६० ॥ ढाल ढाल - वधावानु । सोहम्मस्वामी गणधरु केवलज्ञानी सार । — Jain Education International ६ संघे टालइ जनतणा जननुं रे छइ ए आधार के ॥ ६१ ॥ आंचली सोहम्म सामी वां वांदइ रे सुरनरना कोडि कि । वांदइ रे मुनिवर करजोडिके । सोह० लबधि अठावीसिं भरिउ परवरिंउ बहु परवार । जगमाहिं नाम ते राखीउं तारीया रे संसार अपार के ॥ ६२ ॥ सो० वरस पंचास घरि वश्या छदमस्त बितालीस । आठ वरस हऊआ केवला व्याप्या रे जंबूयु मुनीस के || ६३ || सोह० राजग्रहि अणसण करिउं मास दिवस जव थाइ । शेष करम ते क्षे करी शवपुरि स्वामि जाइ के ॥ ६४ ॥ सोह० परमानंद आनंदमय अनंत सुखमइला । काल जासि जु अतिघणुं तुहि रे नहीं हुइ खीण के || ६५ ॥ सो० रिद्धि वृद्धिनी बहु सिद्धि हुइ भइ वारु यस । मंगलमाल ते पामीर हुइ रे घरि लीलविलास के || ६६ || सोह० प्रहि ऊठीनइ गाईइ पाईइ परिमाणंद | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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