Book Title: Subhat Swadhyaya
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ October-2007 35 भट्ट भ[ सयंभवसूरि, नामिई अष्ट महासिद्धिपूर; होम करंता प्रतिबीझव्या, प्रभवस्वामि पाटि झूझीआ. 22 कयवन्ना रथि(षि?) त्तणु विचार, इणइ अनुक्रमि हुई सातई नारि; रुद्धि छांडी जिण संयम लिउ, कयवनु ईणि परि झूझीउ. 23 खंदकसीसह करूं प्रणाम, दुरिय पणासई जेहनइ नामि; सध्य पांच सइस्यूं झूझिआ, मरण कालि नवि कायर हूआ.२४ जगत्रय वदीतु हऊ झूझार, मोदिक सरोसा कर्म कीया छार; / यादववंश मांहि वंदणू, ढंढणकुमार नाम तस तणूं. 25 गोयम गणहर गुणभंडार, जेहनी लबधि घणि विस्तारि; पनरस तापस प्रतिबूझव्या, अष्टापद गिरिवरि झूझूआ. 26 चक्रवर्ति भरत्थेसर भणूं, खरूं झूझ दोहिलूं तस तणूं; आरीसा मांहि केवलनाण, ईणि परि झुझि भड संग्रामि. 27 शरणागत छलि(वछलि?) भडीउ वीर, शांतिजिणेसर साहसधीर; तेहना गुण न लाभइ पार, एक जीभ किसूं कहूं विचार ? 28 इणि अनुक्रमि जिणशासनि सार, अनंत सभट नवि लाभइ पार; भणइ गुणइ सांभलइ जि कोइ, मुगतिरमणीइ तीह निश्चल होइ. 4 तस तणूः 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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