Book Title: Subhat Swadhyaya Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ October-2007 भडिवाइ (५) : वीर तरीके ख्याति भडिया (६) : लड्या कासगी (१०) : काउसग्गमां प्राण (११) : पराणे अनमूली (१३) : उन्मूलीने-ऊखेडीने चापडी (१७) : चपटीमां ? थप्पडमां ? 'ठाह (२१) : स्थान फेडिउ (२१) : पूरं कर्यु, दूर कर्यु. जिनशासनि जे अछइ सभट, ते हूं हवडां कहिसु प्रगट; जीणि नीठविउं नाम कर्मह तणूं, जई वशा ते शवपुरि भणूं. १ थूलिभद्र जिनशासनि भणूं, खरूं झूझ दोहिलूं तस तणू, मारी मयण वेशा कीउ बोध, थूलिभद्र जिनशासनि योध. २ वडउ राउत भणूं जंबूकमार, तेहनइ अछई अट्ठ कुमारि; पांच सई सरसी लीधी दीख, कर्म भांजी भड लाई सीख. ३ हलूउ नेमिकुंअर मन भणउ, लहूआतणइ(उ?) सुधू सांभलू; लहूउ दिणीयर हुई तेजवंत, रथि चडिउ राजलिदे-कंत. ४ जोइ न झूझतणु भडिवाइ, वंसह कोटि चडिउ सोहाइ; तिणि चडी कीधु कर्मसंहार, इलाईपुत्र अभिनवउ झूझार. ५ जोइ न झूझ तणी(भणी?) एक 'मारि (?), आठ-बत्रीसी मेल्ही नारि; धनु-शालिभद्र बे चालीआ, तपसंयम लेई कर्मसिउ भडिआ. ६ जोइ न झूझतणी एक जाति, वसइ वेसाघरि दीह नइ राति; दस प्रतिबोधी करि आहार, नंदिसेण अभिनवु झूझार. ७ जोइ न झूझ तणी एक - लि(चालि?), सरि बांधी माटीनी पालि; खइरअंगार दही कर्मजाल, इणी परि झूझइ गयसकमाल. ८ १. ठाह-थाह-थाग-ताग-एनो ताग पामी लीधो । २. मारि-मार-कामदेव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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