Book Title: Subhat Swadhyaya Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ ३४ अनुसन्धान- ४१ चिलाइपुत्र मिलिउ चोरह सत्थि, मारी स्त्री मस्तिक लिउ हत्थि; पूछिउ धर्म सुजाणे कहिउ, इणी परि झूझी कर्म सिउं भयु ( भडिउ ? ) ९ सेठि सुदरसिण कासगी रहिउ, अंतेउरि ऊपाडी लीउ; राणी जोउ प्राणविनाण, सेठिई तिहानि मेहल्युं माण. १० सेठि सुदरसिण खरु सविचार, सील जि ( नि ? ) समकित जस हथीयार; मनह माहि समरइ नवकार, जोइ न वणिक सउ झूझार. ११ बाहुबलि अभिनवु झुझार, कर्म अनमूली कीधा छार; वरस दिवस सोइ कासगि रहिउ कर्म अनमूली शिवपुरि गयउ . १२ अइमतु बेडी जिम तरि, जलह माहि बाहिरि सोइ फिरइ; पणग-दिग-मट्टी ऊचरि, अठवरीसु केवल वरि १३ वयरसीह जिनशासणि सार, लहुया लगइ पुण अंग इग्यार; जातमात्र जिणि मोह जीपिउ, जोइ न बालक किम झूझिउ. १४ अवंतीनयर अवंतीसुकुमार, गुरुवयण सांभली विसाल; नलनीगल विमाण जव दीठ, रयणमाहि सोइ जई बईठ. १५ जोइ न झूझइ साहसधीर, दशणभद्र चालिउ वंदणि वीर; सरपिति चालिउ कोपि चडी, तीणइ जीतु एकइ चापडी. १६ क्षमाखण्ड करि ग्रहिउ वीर, कूरगड जोवउ साहसधीर; वार करंता कर्म शवि नीठ, मुगतिपुरी सोड़ जई बईठ. वंकचूल बंकु झूझार, क्रोध हणिउ जीणइ खड्ग ] प्रहारि; अणजाण्या फल शवि परिहरी, संसारसमुद्र गयउ लीला तरी. राजगृहनयरि रोहणिउ चोर, कर्म उनमूली कीधां दूरि; गाथा एकमांहि प्रतिबोध, इणी परि झूझइ रोहणीउ योध. कालकसूरि प्रभावक हूआ, सरसति कारणि ते झूझूआ; गरदभिलनउ जेणिs फेडिउ ठाह, जिणशासण मांहि करिउ ऊछाह. २० १८ Jain Education International १७ बीजा हुआ कालिकसूरि, सष्य प्रमाद सवि कीधा दूरि; स्वामि शीमंधर करि वखाण, सुरपिति वंदणि आविउ पिठांण For Private & Personal Use Only १९ २१ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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