Book Title: Subhat Swadhyaya
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-४१ सुभट स्वाध्याय सं. उपा. भुवनचन्द्र सज्झाय (स्वाध्याय) नामनो गुजराती काव्यप्रकार जैन साहित्यमां प्रसिद्ध छे. जैन ज्ञानभण्डारोमां आ प्रकारनी हजारो रचनाओ मळे छे. आवी एक अज्ञातकर्तृक सज्झाय अहीं प्रस्तुत छे. रचना पंदरमा-सोळमा सैकानी जणाय छे. सज्झायना सैकावार स्वरूपना नमूना तरीके आ रचना रसप्रद छे. _ 'भरहेसर०' प्राकृत सज्झाय प्रसिद्ध छे. अनु० ३९मां 'मुनिमाला' नामक कृति छपाई छे, ते पण 'सज्झाय' छे. प्रस्तुत 'सुभटस्वाध्याय' मुनिमालानी शैलीनी प्राचीन गुजराती रचना छे. छन्द चोपाई छे. सज्झायनो विषय महामुनिओना गुणकीर्तननो छे. कविए महामुनिओने 'पराक्रमी योद्धा'ना रूपमा वर्णव्या छे, मोह, कर्म, परीषह, विपरीत संयोगो वगैरेनी सामे लडीने आ महापुरुषो विजेता बन्या छे. 'सुभट'नी कल्पना स्वीकारवाथी महासती-महासाध्वीओने कवि सज्झायमां स्थान आपी शक्या नथी. एक एक कडीमां एक एक महापुरुषना नामोल्लेख साथे एमना पराक्रमनुं अहोभावपूर्ण संक्षिप्त चित्रण करवामां आव्युं छे. सज्झायमा वारंवार 'जोइ न...' शब्दगुच्छ आवे छे. एनो अर्थ छे : जोने, जुओ ने. आना द्वारा कविए ए महानायकोना प्रराक्रम तरफनो आश्चर्यभाव सुन्दर रीते व्यक्त कर्यो छे. प्रथम बे कडीनो भावार्थ : __ "जिनशासनमा जे सुभटो छे तेमनुं हूं हवे प्रगट वर्णन करीश, जेमणे कर्मनुं नामनिशान मिटावी दीधुं अने शिवपुरीमां जइने वस्या." "जिनशासनमा स्थूलभद्र योद्धा छे – तेमनुं युद्ध खरेखर दोह्यलुं - आकरं हतुं; मदनने मारीने जेमणे वेश्याने प्रतिबोध पमाड्यो." शब्दो विशे नीठविउ (१) : नाश कर्यो, अन्त आण्यो राउत (३) : सरदार (राजपुत्र) सुधू (सुध ?) (४) : खबर, समाचार : खदार समाज Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ October-2007 भडिवाइ (५) : वीर तरीके ख्याति भडिया (६) : लड्या कासगी (१०) : काउसग्गमां प्राण (११) : पराणे अनमूली (१३) : उन्मूलीने-ऊखेडीने चापडी (१७) : चपटीमां ? थप्पडमां ? 'ठाह (२१) : स्थान फेडिउ (२१) : पूरं कर्यु, दूर कर्यु. जिनशासनि जे अछइ सभट, ते हूं हवडां कहिसु प्रगट; जीणि नीठविउं नाम कर्मह तणूं, जई वशा ते शवपुरि भणूं. १ थूलिभद्र जिनशासनि भणूं, खरूं झूझ दोहिलूं तस तणू, मारी मयण वेशा कीउ बोध, थूलिभद्र जिनशासनि योध. २ वडउ राउत भणूं जंबूकमार, तेहनइ अछई अट्ठ कुमारि; पांच सई सरसी लीधी दीख, कर्म भांजी भड लाई सीख. ३ हलूउ नेमिकुंअर मन भणउ, लहूआतणइ(उ?) सुधू सांभलू; लहूउ दिणीयर हुई तेजवंत, रथि चडिउ राजलिदे-कंत. ४ जोइ न झूझतणु भडिवाइ, वंसह कोटि चडिउ सोहाइ; तिणि चडी कीधु कर्मसंहार, इलाईपुत्र अभिनवउ झूझार. ५ जोइ न झूझ तणी(भणी?) एक 'मारि (?), आठ-बत्रीसी मेल्ही नारि; धनु-शालिभद्र बे चालीआ, तपसंयम लेई कर्मसिउ भडिआ. ६ जोइ न झूझतणी एक जाति, वसइ वेसाघरि दीह नइ राति; दस प्रतिबोधी करि आहार, नंदिसेण अभिनवु झूझार. ७ जोइ न झूझ तणी एक - लि(चालि?), सरि बांधी माटीनी पालि; खइरअंगार दही कर्मजाल, इणी परि झूझइ गयसकमाल. ८ १. ठाह-थाह-थाग-ताग-एनो ताग पामी लीधो । २. मारि-मार-कामदेव । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ अनुसन्धान- ४१ चिलाइपुत्र मिलिउ चोरह सत्थि, मारी स्त्री मस्तिक लिउ हत्थि; पूछिउ धर्म सुजाणे कहिउ, इणी परि झूझी कर्म सिउं भयु ( भडिउ ? ) ९ सेठि सुदरसिण कासगी रहिउ, अंतेउरि ऊपाडी लीउ; राणी जोउ प्राणविनाण, सेठिई तिहानि मेहल्युं माण. १० सेठि सुदरसिण खरु सविचार, सील जि ( नि ? ) समकित जस हथीयार; मनह माहि समरइ नवकार, जोइ न वणिक सउ झूझार. ११ बाहुबलि अभिनवु झुझार, कर्म अनमूली कीधा छार; वरस दिवस सोइ कासगि रहिउ कर्म अनमूली शिवपुरि गयउ . १२ अइमतु बेडी जिम तरि, जलह माहि बाहिरि सोइ फिरइ; पणग-दिग-मट्टी ऊचरि, अठवरीसु केवल वरि १३ वयरसीह जिनशासणि सार, लहुया लगइ पुण अंग इग्यार; जातमात्र जिणि मोह जीपिउ, जोइ न बालक किम झूझिउ. १४ अवंतीनयर अवंतीसुकुमार, गुरुवयण सांभली विसाल; नलनीगल विमाण जव दीठ, रयणमाहि सोइ जई बईठ. १५ जोइ न झूझइ साहसधीर, दशणभद्र चालिउ वंदणि वीर; सरपिति चालिउ कोपि चडी, तीणइ जीतु एकइ चापडी. १६ क्षमाखण्ड करि ग्रहिउ वीर, कूरगड जोवउ साहसधीर; वार करंता कर्म शवि नीठ, मुगतिपुरी सोड़ जई बईठ. वंकचूल बंकु झूझार, क्रोध हणिउ जीणइ खड्ग ] प्रहारि; अणजाण्या फल शवि परिहरी, संसारसमुद्र गयउ लीला तरी. राजगृहनयरि रोहणिउ चोर, कर्म उनमूली कीधां दूरि; गाथा एकमांहि प्रतिबोध, इणी परि झूझइ रोहणीउ योध. कालकसूरि प्रभावक हूआ, सरसति कारणि ते झूझूआ; गरदभिलनउ जेणिs फेडिउ ठाह, जिणशासण मांहि करिउ ऊछाह. २० १८ १७ बीजा हुआ कालिकसूरि, सष्य प्रमाद सवि कीधा दूरि; स्वामि शीमंधर करि वखाण, सुरपिति वंदणि आविउ पिठांण १९ २१ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ October-2007 35 भट्ट भ[ सयंभवसूरि, नामिई अष्ट महासिद्धिपूर; होम करंता प्रतिबीझव्या, प्रभवस्वामि पाटि झूझीआ. 22 कयवन्ना रथि(षि?) त्तणु विचार, इणइ अनुक्रमि हुई सातई नारि; रुद्धि छांडी जिण संयम लिउ, कयवनु ईणि परि झूझीउ. 23 खंदकसीसह करूं प्रणाम, दुरिय पणासई जेहनइ नामि; सध्य पांच सइस्यूं झूझिआ, मरण कालि नवि कायर हूआ.२४ जगत्रय वदीतु हऊ झूझार, मोदिक सरोसा कर्म कीया छार; / यादववंश मांहि वंदणू, ढंढणकुमार नाम तस तणूं. 25 गोयम गणहर गुणभंडार, जेहनी लबधि घणि विस्तारि; पनरस तापस प्रतिबूझव्या, अष्टापद गिरिवरि झूझूआ. 26 चक्रवर्ति भरत्थेसर भणूं, खरूं झूझ दोहिलूं तस तणूं; आरीसा मांहि केवलनाण, ईणि परि झुझि भड संग्रामि. 27 शरणागत छलि(वछलि?) भडीउ वीर, शांतिजिणेसर साहसधीर; तेहना गुण न लाभइ पार, एक जीभ किसूं कहूं विचार ? 28 इणि अनुक्रमि जिणशासनि सार, अनंत सभट नवि लाभइ पार; भणइ गुणइ सांभलइ जि कोइ, मुगतिरमणीइ तीह निश्चल होइ. 4 तस तणूः 29