Book Title: Stavan Chovisi
Author(s): Jinsenvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
128
March-2002
श्रीनमिजिनस्तवन श्री ऋषभानन गुणनीलो ।
श्रीनभिप्रभुजीने सेवतां होये सुखनो पूरण गेहरे जिणंद । चरणकमलनी सेवनां करतां वधई गुणनेह रे जि० ||श्री० ॥१॥
वप्राराणीनो नंदलो जेहने सेवइ चोसठि इंद्र रे । जि० ॥ त्रिगडे बेठां सोहिई प्रतिबुझवई सुरनरवृंद रे ||जि०॥ श्री० ॥२॥
तुमे सारथी शिवपुरतणां समकित परम आधार रे जि० । ते समकित मुझ दीजई आतम हित सुखकार रे जि० ।। श्री० ॥३॥
त्रिण तत्त्व मुझ दीजीइं करो करुणा हिवई सुखदाय रे जि० । दायक नायक उपमा तुमारी तुम भगते सुख थाय रे जि० ॥श्री० ॥४॥
श्रीजिनचंद्र मया करो दोलति दाई सुखकंद रे जि० । हीरसागर सुख संपदा ए तो प्रणमें परमाणंद रे जि० ।श्री०॥५॥
इति श्री नमिनाथ स्तवनम् ॥
१. 'तुमारी' नथी.
श्रीनेमिनाथस्तवन नरपती रे सीख दीओ अमने हवै ए देशी ॥
श्री नेमजी रथ फेरी पाछा किम वल्यारे साहिबा, नाणी प्रीत लगार ।
वयण मानो सयण वारु । नेमजी गोखे बेठी पीयुने वीनवे रे सा० किम छोडो राजुल नार ।
व० ।श्री०॥१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19