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March-2002
द्रव्य भाव मली एकतानस्युं रे आराहे पूजन ठाम ।। अहनिशि प्रभुनी प्रभुता लीनो रहे रे सुरनरमें चढती मांम ॥श्री०॥२।।
कमठासुर हठ दुरई कर्यों रे करुणा कीधी खास । प्रदीप सम केवल झलहलई रे को अनाण तिमिर नास ॥श्री०॥३॥
त्रिगडें बेठा श्री जिन उपदिशे रे लोकलोक स्वरूप । 'लोकमार्गनि अवलोकतां रे अरूपी अक्षय रूप ॥श्री०॥४॥
महानंद मोहलमा राजता रे सुख अनंतनो वास । ते जिनचन्द्र प्रभु हृदयई धरे रे प्रगटई हीर जसवास ||श्री०॥५॥
इति श्री पार्श्व जिन स्तवनम् ॥ १. आणंद २. तत्त्व मार्गनि
श्रीमहावीरस्वामिस्तवन प्रथम गोवालिया त० ए देशी ॥
त्रिभुवन केरो साहिबा जी वीरजी परम दयाल । शासन शोभा वधारतो .जी करी करुणा मयाल रे जिनजी रे ॥१॥
दासनी करो रे सार जि० ॥
सिद्धारथकुल-नभोमणि जी त्रिशला मात मल्हार । क्षत्रीयकुंडे जनमीया जी चौद स्वप्न लही सार रे जि० ॥२॥
संवच्छरी दान देई करी जी राज-रमणीनें छोड । संजमनारी परणीया जी पुंहतां मननां कोड रे जि० ॥३॥
घोर परिसहां जीतीया जी तोड्या कर्मना मोड ।। घातिकर्म दूरि कर्यां जी पोहता पामी सुर नमें कोड रे जि० ॥४॥
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