Book Title: Stavan Chovisi
Author(s): Jinsenvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 14
________________ 126 March-2002 श्रीअरनाथस्तवन अरज सुणो सूडार रा० ए देशी ॥ अरज अरज सुणो अरनाथजी होजी गुणधणी गिरुआ जगनाथ । अहनिशि अहनिशि उभा उलगें होजी करुणाकर स्वामी अनाथ अर० ॥१॥ एक एक तारी छै प्रभु उपरे होजी जिम मोरा मन मेह । चातुक चातुक पीयु पीयु करे होजी तिम समरूं मन गेह ॥अर० ॥२॥ प्रभुजी प्रभुजी तुमे तो जइ दूरि वस्या होजी शी पेर करीइ स्वाम । ध्यान ध्यान आकर्षणे प्रभुजी आणीया होजी मुझ मंदिर ठाम अर० ॥३|| वासो वासो वस्या मुझ मन्त्रमा होजी स्वामी जिनिं रहवा जोग । रत्न रत्नत्रयीना सुख दीजीइ होजी मिलीया अविहड भोग अर०॥४॥ श्रीजिन श्रीजिनचंद्र लहिर करो जगधणी होजी जीनजो करो रे पसाय । हीर हीरसागर जिनगुण स्तवे होजी नमे लळीलळी पाय अर० ॥५॥ इति श्री अरनाथ स्तवनम् ॥ १. मुझ मन मंदिर श्रीमल्लिनाथस्तवन हमीरानी देशी ॥ साहिब सेवा साधतां जो नसरे कोई काम सनेही । अंतरजामी अहनिशे कुण जपशें तुम नाम सनेही ॥१॥ मल्लि जिणेसर सेवीई, ए आंकणी । निसवारथ कोई केहने चरणे न नामे सीस स० । सेवक तोहिज सेवसें जो पहुंचे मननी जगीस स० ॥२॥ मल्लि०|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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