Book Title: Srushtivad Ane Ishwar
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Jain Sahitya Pracharak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 447
________________ આધુનિક વિદ્વાનેાના અભિપ્રાયે ४०७ पृ. २६ पर:- 'जो २ मित्र के पुत्र है वेर श्याम है और जो २ श्याम नहीं है वे २ मित्र के पुत्र भी नहीं हैं। गर्भस्थ मित्रका पुत्र है इस लिये श्याम होगा । परन्तु यदि मित्र का पुत्र गोरा हो जाय तो बाधक कोन ? | इसी लिये विपक्ष में बाधक के अभाव से मित्रपुत्रत्व और श्यामत्व में व्याप्त नहीं हो सकती । इस ही प्रकार कार्य और चेतन कर्ता में भी विपक्ष में बाधक के अभाव से व्याप्ति नहीं हो सकती । इस प्रकार कार्यत्वहेतु ईश्वर की सत्ता सिद्ध करने में असमर्थ है। बा० सूरजभानुजी जैन ने भी अपनी पुस्तक 'जगदुत्पत्ति विचार' के पृष्ठ ४०-४१ में ईश्वर के कर्तृत्व पर लिखा है बाकी सब ही जंगल में गल सड़ जाते हैं. यदि ईश्वर इन वस्तुओं का बनानेवाला होता तो इतनी ही उत्पन्न करता जितनी काम आती हैं और ऐसे ही स्थान में पैदा करता जहाँ वह काम आवें ।...... यदि संसार का सर्व प्रबन्ध ईश्वर ही करता तो वह ऐसा कदाचित् नहीं करता कि चोर भी बनाता और चोरों के पकडने के वास्ते चौकीदार भी बिठाता । (२७) क्यों जी ? यदि संसार का सब कार्य ईश्वर ही करता है तो मैं जो उसका खंडन कर रहा हूँ वह भी वास्तव में वही कर रहा है, संसार को धोखे में डालने की कोशीश कर रहा है. यदि ईश्वर को प्रबन्धकर्ता माना जावे तो मनुष्य का कर्त्तव्य कुछ भी नहीं है. कोई २ मनुष्य ऐसा मानते हैं कि कर्म करने में मनुष्य स्वतंत्र है परन्तु फल उसका ईश्वर देता है; परन्तु विचार करने पर यह बात बिलकुल असम्भव सिद्ध होती है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456