Book Title: Srushtivad Ane Ishwar
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Jain Sahitya Pracharak Samiti

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Page 445
________________ આધુનિક વિદ્વાનાના અભિપ્રાય ४०५ उन्हें इसका ख्याल ही न हो रहा था, कि उनकी चिर सचित जातीय निधि नष्ट की जा रही है। पीछे जब नशा टूटा, तो देखा कि पूर्वजों की सभी उत्तम कृतियाँ नष्ट कर दी गई । जर्मन जाति में एक ईश्वरवाद तलवार के बल ही फैलाया गया । उस समय पुराने धर्म के साथ २ जर्मन जाति का व्यक्तित्व भी मिटा देना आवश्यक समझा गया । उनकी लिपि को धत्ता बताया गया । उनके साहित्य को खोज खोज कर जलाया गया । उनके मन्दिरों को ही बर्बाद नहीं किया गया, बल्कि, यह सोच कर कि कहीं यह लोग अपने ओक वृक्षों की पूजा करके भ्रष्ट न हो जायें, लाखों विशाल ओक वृक्ष काट डाले गये । एक- ईश्वरवादियों के ऐसे कारनामें एशिया के ही नहीं, अमेरिका की माया और ● अजे तक जैसी सभ्यताओं के संहार के कारण हुये । अपने नाम पर सैंकडों वर्षों तक इस प्रकार के भयङ्कर अत्याचार करते, खून की नदी बहाते देख भी, यदि ईश्वर रोकने के लिये नहीं आया, तो इस से बढकर उस के न होने का और दूसरा प्रमाण क्या चाहिये ? ( " साम्यवाद ही क्यों? " पृ. ५८-५३ ) ईश्वर के सृष्टिकर्तृत्व के विषय में स्याद्वादवारिधि पं. गोपालदासजी बरैया का अभिप्राय । ईश्वर का कर्तव्य है कि मनुष्य को पाप न करने दे, न कि उसके पाप करने पर उसको दण्ड दे । इसलिये यदि ईश्वर सरीखा सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान् और दयालु इस लोक का कर्त्ता होता तो लोक में किसी भी प्रकार पाप की

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