Book Title: Srushtivad Ane Ishwar
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Jain Sahitya Pracharak Samiti

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Page 451
________________ આધુનિક વિદ્વાનોના અભિપ્રાય ४११ ईश्वर के विषयमें महात्मा गाँधी का अभिप्राय ।। ईश्वर है भी और नहीं भी है। मूल अर्थ से ईश्वर नहीं है। मोक्ष के प्रति पहुँची हुई आत्मा ही ईश्वर है, इसलिये उस को सम्पूर्ण ज्ञान है। भक्ति का सच्चा अर्थ मात्मा का शोध ही है। आत्मा को जब अपनी पहचान हो जाती है, तब भक्ति नहीं रहती, फिर वहाँ ज्ञान प्रकट होता है। नरसी मेहता इत्यादि ने ऐसी ही आत्मा की भक्ति की है। कृष्ण, राम इत्यादि अवतार थे, परन्तु, हम भी अधिक पुण्य से वैसे हो सकते हैं। जो आत्मा मोक्ष के प्रति पहुँचने के लगभग आ जाती है, वही अवतार है। उनके विषय में उसी जन्म में सम्पूर्णता मानने की आवश्यकता नहीं। ('महात्मा गांधी के निजी पत्र' पृ. ४७) भगवद्गीता का अवतरण ॥ न कर्तृत्वं न कर्माणि, लोकस्य सृजति प्रभुः। न कर्मफलसंयोग, स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥ (गी०५-१४) जगत का प्रभु न कर्तापन रचता है, न कर्म रचता है; न कर्म और फल का मेल साधता है। प्रकृति ही सब करती है। टिप्पणी-ईश्वर कर्ता नहीं है। कर्म का नियम अटल और अनिवार्य है। और जो जैसा करता है उसको वैसा भरना ही पड़ता है। नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः। अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुद्यन्ति जन्तवः ॥ (गी०५-१५)

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