Book Title: Sramana 2007 10 Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 6
________________ श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००७ बौद्धों का शून्यवाद साहित्यवाचस्पति डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव * भारतीय दर्शनों में बौद्ध दर्शन ने अपना विशिष्ट महत्त्व आयत किया है। ईसापूर्व छठी शती में भगवान् बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया गया। बुद्ध के उपदेशों में निहित दार्शनिक विचारों का संकलन और आकलन ही बौद्ध दर्शन के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। यह चार्वाक दर्शन की भाँति विशुद्ध नास्तिक दर्शन नहीं है। बौद्धों के लिए बुद्ध ही भगवान् या ईश्वर हैं और बौद्धागम ही बौद्धों के लिए वेद है। इस प्रकार बौद्ध भी प्रकारान्तर से ईश्वर और वेद की सत्ता में विश्वास करते हैं; इसलिए उनका परलोकवादी दर्शन तथाकथित रूप में नास्तिक दर्शन नहीं है। पुराणों में वर्णित दशावतारों में भगवान् बुद्ध भी परिगणित हैं। बुद्ध-निर्वाण के प्रायः डेढ़ सौ वर्षों के अन्तराल में, बुद्ध के अनुयायियों में मतभेद की स्थिति इतनी बढ़ गई कि बौद्ध संघ दो यानों (भागों) में विभक्त हो गया - हीनयान और महायान । हीनयान में परम्परावादी स्थविरों का वर्चस्व था और महायान में सुधारवादी महासांघिकों का। इन दोनों वर्गों की वैचारिकी में मतैक्य नहीं था। दोनों एक-दूसरे के घोर विरोधी थे। स्थविर-संघ परम्परावादी होने के कारण 'हीनयानी' तथा महासांघिक वर्ग प्रगतिशील विचारों के होने के कारण 'महायानी' के नाम से प्रसिद्ध हुए। व्युत्पत्ति के आधार पर 'हीनयान' 'का अर्थ 'छोटी नौका' और 'महायान' का अर्थ 'बड़ी नौका' है। सम्भवतः स्थविरवादियों को हेय समझने के कारण महासांघिकों द्वारा उन्हें 'हीनयानी' कहा जाने लगा और स्वयं प्रगतिवादी होने के कारण अपने को 'महायानी' कहने लगे हों। वस्तुतः दोनों यान एक ही थे, जिन्हें 'बुद्धयान' कहा जाता था; क्योंकि दोनों ही बुद्ध वचनों के अनुयायी थे। इन दोनों सम्प्रदायों से चार दार्शनिक सम्प्रदाय विकसित हुए - वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार और माध्यमिक प्रथम दो वैभाषिक एवं सौत्रान्तिक सम्प्रदाय हीनयान से सम्बद्ध थे और द्वितीय दो योगाचार एवं माध्यमिक सम्प्रदाय महायान से। इस प्रकार बौद्ध दर्शन के चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं। सर्वास्तिवादी वैभाषिक मत के अनुसार, समस्त जागतिक पदार्थ सत्य हैं। सौत्रान्तिक मतानुयायी संसार के बाह्य अस्तित्व को मानते हैं, किन्तु वे उसे अनुमेय स्वीकार करते हैं। वे चित्त और बाह्य पदार्थ दोनों की सत्ता स्वीकार करते हैं, पर विज्ञानवाद के * ७, भारतीय स्टेट बैंक कॉलोनी, काली मन्दिर मार्ग, हनुमाननगर, कंकड़बाग, पटनाPage Navigation
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