Book Title: Sramana 1995 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 64
________________ 158: श्रमण / अप्रैल-जून/ 1995 8. अल्पभाषी अपनी तथा सत्यशील 9. इन्द्रिय और मन पर अधिकार करने वाला अलोलुप (इन्द्रिय विषयों में अनासक्त ) 10. तेजस्वी तेजस्वी धैर्यवान कोमन 11. दृढधर्मी 12. नय एवं विनीत 13. चपलता रहित तथा शांत 14. पापभीरु शान्त अप्रशस्त या अधर्म लेश्याओं में प्राणियों की मनःस्थिति एवं चरित्र (उत्तराध्ययन 25 के आधार पर जैन दृष्टिकोण ) 1. अज्ञानी 2. 3. मन, वचन एवं कर्म से अगुप्त 4. दुराचारी 5. कपटी 6. मिथ्यादृष्टि 7. अविचारपूर्वक कर्म करने वाला 8. नृशंस 9. हिंसक 10. रसलोलुप एवं विषयी 11. अविरत 12. चोर चपलतारहित (अचपल ) लोक और शास्त्रविरुद्ध आचरण में लज्जा आसुरी सम्पदा से युक्त प्राणी की मनःस्थिति एवं चरित्र (गीता के आधार पर ) 26 गीता का दृष्टिकोण कर्तव्याकर्तव्य के ज्ञान का अभाव नष्टात्मा एवं चिन्ताग्रस्त मानसिक एवं कायिक शौच से रहित (अपवित्र ) अशुद्ध आचार (दुराचारी ) कपटी, मिथ्याभाषी आत्मा और जगत् के विषय में मिथ्या दृष्टिकोण अल्पबुद्धि क्रूरकर्मी हिंसक, जगत् का नाश करने वाला कामभोग परायण तथा क्रोधी तृष्णायुक्त चोर महाभारत और लेश्या सिद्धान्त गीता महाभारत का अंग है और महाभारत में सनत्कुमार एवं वृत्रासुर के संवाद में प्राणियों के छः प्रकार के वर्णों का निर्देश हुआ है। वे वर्ण हैं : कृष्ण, धूम्र, नील, रक्त, हारिद्र और शुक्ल । इन छ: वर्णों की सुखात्मक स्थिति का चित्रण करते हुए कहा गया है कि कृष्ण, धूम्र और नील वर्ण का सुख मध्यम होता है, रक्त वर्ण का सुख सह्य होता है। हारिद्र वर्ण सुखकर होता है और शुक्ल वर्ण सर्वाधिक सुखकर होता है । ज्ञातव्य है कि जैन परम्परा में भी षट्लेश्याओं की सुखदुःखात्मक स्थितियों की चर्चा उपलब्ध होती है। इसके अतिरिक्त महाभारत में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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