Book Title: Sramana 1995 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 76
________________ पार्श्वनाथ विद्यापीठ के नये प्रकाशन पुस्तक - तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा लेखक एवं सम्पादक प्रो० सागरमल जैन प्रकाशक पूज्य सोहनलाल स्मारक पार्श्वनाथ शोधपीठ ( ग्र० मा० सं० - - ६७ ), वाराणसी आकार - डिमाई पेपर बैक, पृष्ठ १२+१४८, मूल्य - तीस रुपये मात्र । - ५ १६६४ तत्त्वार्थसूत्र संक्षेप में जैनधर्म एवं दर्शन की सभी मूलभूत मान्यताओं को प्रस्तुत करने के कारण जैनधर्म का प्रतिनिधि ग्रन्थ माना जाता है। इसकी मान्यता सभी परम्पराओं में है । इसके लेखक, लेखनकाल, परम्परा आदि को लेकर विद्वानों में मतभेद है । विभिन्न सम्प्रदाय के विद्वानों द्वारा इसे अपनी अपनी परम्परा का ग्रन्थ सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है जिसके फलस्वरूप एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगाये गये, जिससे मतभेद और भी गहरे होते गये। प्रो० सागरमलजी जैन ने अत्यन्त परिश्रम से तत्त्वार्थसूत्र के लेखक, रचनाकाल, लेखक की परम्परा आदि प्रश्नों पर विचार किया है और अपने निष्कर्ष भी प्रस्तुत किये हैं । इस कृति में लेखक ने पूर्ववर्ती मुनियों एवं विद्वानों की कृतियों का भलीभाँति अध्ययन किया है और उनके द्वारा दिये गये तर्कों एवं निष्कर्षों की समीक्षा करते हुए अपना मन्तव्य प्रस्तुत किया है। लेखक का यह कथन है कि तत्त्वार्थसूत्र साम्प्रदायिक विघटन एवं साम्प्रदायिक मान्यताओं के स्थिरीकरण के पूर्व की रचना है । Jain Education International लेखक ने इस कृति को जैनविद्या के मूर्धन्य विद्वान् पं० सुखलालजी संघवी, पं० बेचरदास जी दोशी, पं० नाथूराम जी प्रेमी, पद्मभूषण पं० दलसुखभाई मालवणिया, प्रो० हीरालाल जी, प्रो० नथमल टाटिया एवं प्रो० मधुसूदन जी ढाकी को समर्पित किया है। पुस्तक - सागर जैन विद्याभारती ( भाग १ ) लेखक एवं सम्पादक प्रो० सागरमल जैन प्रकाशक पार्श्वनाथ शोधपीठ ( ग्र० मा० सं० ७०) प्रथम संस्करण - १६६४, पृष्ठ - ३२+२६४, आकार मूल्य - १०० रुपये मात्र For Private & Personal Use Only - वाराणसी - ५, डिमाई पेपर बैक, www.jainelibrary.org

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