Book Title: Sona aur Sugandh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

Previous | Next

Page 4
________________ प्रकाशकीय श्री देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री की प्रस्तुत लघुकृति 'सोना और सुगन्ध' पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता है । इस कृति में २६ लघु कहानियाँ है। मुनिश्री जी इधर गम्भीर अनुशीलनात्मक ग्रन्थों के प्रणयन तथा गुरुदेव श्री के अभिनन्दन ग्रन्थ के सम्पादन में अत्यधिक व्यस्त रहें, फिर भी बीच-बीच में अवकाश निकालकर कहानियाँ रूपक आदि लिखते ही रहते हैं। जैन कथाएँ के २५ भागों का सम्पादन भी सम्पन्न किया है और वे प्रकाशित भी हो चुकी है । पाठकों में सर्वत्र ही उनका आदर हुआ है। जिस हाथ में जैन कथाएँ पहुँची है वहाँ से दुबारा उनकी मांग आई है। इस अभिरुचि एवं अनुकूल प्रतिक्रिया से प्रभावित होकर हमने आगे के भागों के प्रकाशन का भी निश्चय किया है और हमारा प्रयत्न चालू है । इसी बीच यह एक लघु कथा संग्रह पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है। इस संग्रह की कथाओं का क्षेत्र कुछ व्यापक है । लोकजीवन में प्रचलित अनेक कथाएँ भी इसमें हैं और पौराणिक तथा ऐतिहासिक कथाएँ भी । प्रत्येक कथा अपने कथ्य को स्वयं ही स्पष्ट कर रही है अतः इस विषय में अधिक कहने की अपेक्षा नहीं। सोना और सुगन्ध के मुद्रण-सम्पादन में श्रीचन्द जी सुराना का सहयोग रहा है साथ ही अर्थदाता सज्जनों ने अर्थ सहयोग देकर उत्साहित किया है एतदर्थ हम उनका हार्दिक आभार मानते हैं । आशा है पाठकों का यह संग्रह पसन्द आयेगा । -मन्त्री तारक गरु जैन ग्रन्थालय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 178