Book Title: Sona aur Sugandh Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 10
________________ १ नारी नहीं, नारायणी [मुनि भवदेव भावदेव ] रेवती गाथापत्नी बारह व्रतधारिणी श्राविका थी । वह हर समय धर्म ध्यान में लीन रहती थी । उसके दो पुत्र थे - भवदेव और भावदेव । माता के धार्मिक संस्कार दोनों पुत्रों पर गिरे । भवदेव ने संसार का परित्याग कर श्रमणधर्म स्वीकार कर लिया। भावदेव ने जब तारुण्य अवस्था में प्रवेश किया तब रेवती ने उसका पाणिग्रहण सन्निकटवर्ती ग्राम की एक सुरूपा कन्या नागला के साथ किया । नागला के साथ विवाह कर भावदेव अपने घर आ रहा था कि जंगल में उसे भवदेव मुनि के दर्शन हुए। उसकी प्रसन्नता का पार न रहा। मुनि भवदेव ने संसार की असारता पर प्रकाश डालते हुए कहा - 'विष से भी विषय भयंकर है । विष एक जन्म में मारता है तो विषय अनन्त जन्मों तक, अतः विवेकी साधक का कर्तव्य है कि वह विषय का परित्याग करे । तू अभी तक विषय के चक्र में फँसा नहीं है अतः सहज रूप में त्याग कर सकता है। भावदेव ! समय रहते हुए चेत जा ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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