Book Title: Sittunja Kappo
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala
View full book text
________________ पृष्ठम् पंक्तिः अशुद्धम् / 54 6 सुन्दरे सुन्दरा 55 5 कमर कर्मर 56 10 पुएण्णं पुण्णं 57 14 पन्यंङ्ग १च्यङ्ग 56 1 वैत्रिव्यं वैचित्र्यं 56. 16 मम् 60 4 लला . ललौ ङ्ख्यषु 68 19 वका वैका 70 13 दीक्षा शिक्षा 70 20 कदचि कदाचि 77 7 कर करः 77 26 नाधीवतं नाथोक्तं 76 10 दह्वि 80 10 बोन्धवा वान्धवाः [2] | पृष्ठम् पंक्तिः अशुद्धम् शुद्धम् 102 3 सहस्त्रा सहस्रा 102 14 भवच्छिदे भवतमश्छिदे 102 22 यशो.. यशा 102 23 तेपो तेषां 103 2 सङ्गहः . सङग्रहः 103 8 लोह लोह 103 21 मय . . 103 21 अतिष्ठ अतिष्ठि 104 5 तं 104 5 पुडरीय . पुंडरी 104 8 गुरु गुरुः 105 5 प्रतिष्ठपद् अतिष्ठिपद् 105 11 बाहुबली बाहुबलि 105 13 गिरि गिरी 105 27 अतिष्ठपन् अतिष्ठिपन् मयं तयं द्वह्नि नृपं 81 26 स्तरा 81 28 भोक्तव्य 81 26 बाणं 84 5 पुष्पः 84 21 सरा 85 7 द्रवम् 85 17 एव . 61 15 कार्ति 61 24 क्वचिश्च 12 1 तदा नहि 64 15 उपवि 14 17 श्लाघ्या 68 : नेशु 101 25 चक्रीराट स्तरो भोक्तव्यं बाणाद् पुष्पैः सरो रवम् एवं कीर्ति क्वचिच्च तदा सोऽपि उपावि श्लाघ्या 107 5 मुष्टियतो 107 28 येऽवभवन् 107 26 बस 108 1 अचलभद्दे 108 24. निक्षिप्वा 106 23 द्वयुत्तर 11. 12 सङ्खयां 111 26 श्रुत्वेदु 112 21 प्रशंस्येति 115 5 यादे 116 23 व हारा 116 30 शीति 117 8 प्रभौः . 118 4 शास्वतः मुष्टिर्यतो येवभवन् वंस अबलभद्द निक्षिप्या द्वय त्तर सङख्यां श्रुत्वैतदु प्रशशंसे याद्दे वसुहारा शीते . प्रभौ शाश्वतः नेमु चक्रिराट्
Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 404