Book Title: Sittunja Kappo
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 21
________________ शत्रुञ्जय-कल्पवृत्तौ 00000000000000000 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 भिल्लस्स तिन्नि भज्जा एगा पभणेइ पाणीयं पाइ / बीना मग्गइ मंसं तइया गवरावए गीयं // 20 // [ सरो नत्थि ] किमाशीर्वचनं राज्ञां ? का शंभोस्तनुमण्डनम् ? / कः कर्ता सुखदुःखानां ? मूलं च सुकृतस्य कः ? // 21 // [ जीव-रक्षा-विधिः] नयरि भमंतइ दिट्ठ मई केसरि चडिओ हथि / / जलनिही परपरि रमइ तो लग्गउ परमत्थि // 22 // [ शुरपलकः] कथं सम्बोध्यते राजा? सुग्रीवस्य च का प्रिया?। निर्धनास्तु किमिच्छन्ति ? किं कुर्वन्ति तपोधनाः? // 23 // [ देव-तारा-धनं ] एकनारि वनगहनि उप्पन्ना, सव्वसुलक्खण जग सइ बनि / इसिउ बेंटउं कूरपइं धरिश्रो जग सकलो जिणि ऊधरिप्रो॥२४॥ [चउणि ] का चीवराणं पवरा ? किं दुलहं मरुदेसमज्झम्मि ? | किं पत्रणाओ चवलं ? दिवसकयं कि हरइ पावं ? // 25 // [ पडि-क-मणं ] पूरितासु समस्यासु वीरसेनेन भभुजा / तं वत्र भ पनन्दिन्यो रुचिरोत्सवपूर्वकम् // 26 // वीरसेनकुमाराय हस्त्यश्वमणिसञ्चयान् / ददौ महीपतिवर्य-वस्त्रदानपुरस्सरम् // 27 // अष्टकन्यायुतो वीर-सेनोऽभ्येत्य निजे पुरे / मातापित्रोः पदो नत्वा प्रमोदं चकवांस्तराम् // 28 // भीमसेनोऽन्यदा वीर-सेनपुत्राय सूत्सवम् / राज्यं दत्त्वा गुरूपान्ते संयमश्रियमाप्तवान् / / 26 / / कुर्वस्तीव्र तपः प्राप्य केवलज्ञानमन्यदा / भीमसेनमुनिः पुत्र-प्रबोधायागमत् क्रमात् // 30 // वीरसेनो ययौ धर्म श्रोतु तातान्तिकेऽन्यदा / तदा ज्ञानी ददौ धर्मो-पदेशमिति सादरम् // 31 // कः सकलः ? सुकृतरुचिः कः सद्बुद्धिविधेयकरणगणः / कः सुभगः? शुभवादी को विश्वजयी ? जितक्रोधः।।३२॥ मैथुनं ये न सेवन्ते ब्रह्मचारिदृढव्रताः / ते संसारसमुद्रस्य पारं गच्छन्ति सुव्रताः // 33 // उत्तमजणेण संगो जइ किजह कहवि नेहपडिबंधो / सो जम्मेवि न विहडइ सच्चचिय पत्थरे रेहा // 34 // यः सिद्धाद्रौ जिनान् पूजा-ध्यानमौनविधानतः / पारराध स यात्येव कल्याणनगरी रयात् / / 35 // कृतानेककुकर्माणो जीवा विमलपर्वते / कुर्वतो ध्यानमौनादि स्वर्गादि वृणुते सुखम् // 36 // यत्राऽसङ्ख्या जना ध्यान-मौनपूजातपःपराः / ययुर्यान्ति च यास्यन्ति मुक्तिं स सेव्य एव तु // 37 // इत्यादितीर्थमाहात्म्यं श्रुत्वा वीरनृपो जगौ / यावच्छत्रुञ्जये नैव नमस्यामि जिनाधिपम् // 38 // तावन्मयकशो जेम-नीयं शेयं भुवस्तले / पाल्यं शीलवतं त्याज्यं पत्रपूगीफलादि च ॥३६॥युग्मम्।। मेलयित्वा बहुं सङ्घ वीरसेनः शुभेऽहनि / चचालाध्वनि तन्धान उत्सवं च पदे पदे // 40 // उत्तमानां सदा धर्म-करणे व ते मनः / नदीवाहीव नीरवन् नीचानां हीयते पुनः // 41 // तीर्थे दृष्टिपथायाते भूगः सङ्घसमन्वितः / तत्र स्थित्वा दिने तस्मिन् प्रथमं तीर्थमानमत् // 42 // अहेत्स्नात्रमहः कृत्वा प्रलभ्य लपनश्रियम् / सङ्घमध्ये नृपः साधून प्रत्यलम्भत भक्तितः॥४३॥ जिनेन्द्रगुरुगीतानि गायन सङ्घः पदे पदे / आरोहाऽनघं तीर्थ सिद्धशैलं तमश्छिदे // 44 //

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