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कृतज्ञताभिव्यक्ति
प्रभु, आचार्य श्रीमद् देवचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब एवं पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय समुद्रसूरीश्वरजी महाराज, साहेब की परोक्ष अनन्त कृपा से तैयार हुए इस ग्रन्थ के प्रकाशन के पल में मैं धन्यता की अनुभूति के साथ कृतज्ञता अभिव्यक्त करता हूं श्रुतस्थविर दर्शनप्रभावक विद्वद्वरेण्य प्रवर्तक मुनिराज श्री जंबूविजयजी महाराज के प्रति, जिन्होंने अपने अमूल्य समय में से समय निकालकर इस ग्रन्थ की वाचना को पढ़ा तथा इस ग्रन्थ के मुद्रण तक की व्यवस्था में पूरा ध्यान दिया। मै कृतज्ञता अभिव्यक्त करता हूं प्रस्तावनालेखक विद्याव्यसंगी पंन्यासप्रवर मुनिराज श्री प्रद्युम्नविजयजी महाराज के प्रति जिन्होंने विहार एवं अन्यान्य कार्यक्रमों में अत्यन्त व्यस्त होने पर भी मेरे आग्रह से इस ग्रन्थ के लिए अभ्यासपूर्ण प्रस्तावना लिखी। मै कृतज्ञता अभिव्यक्त करता हूं अपने सहायक विद्यागुरु पण्डितप्रवर श्रीमान् अमृतभाई मोहनलालजी भोजक के प्रति, जिन्होंने अस्वस्थ होते हुए भी इस ग्रन्थ के संशोधन- सम्पादन में मुझे सभी रीति से सहयोग दिया । मै कृतज्ञता व्यक्त करता हूं प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सहयोग देने वाले अन्यान्य साधुओं एवं विद्वज्जनों के प्रति जिनके प्रोत्साहन तथा सहयोग से यह ग्रन्थ इस रीति से तैयार कर सका । इस पल साधुवाद देता हूं सेवाभावी शिष्य मुनिराज श्री धर्मरत्नविजयजी महाराज को जिसने स्वयं के अध्ययनादि कार्यों को गौण करके सेवादि करते हुए मुझे इस कार्य में सभी रीति से सहयोग दिया । साधुवाद देता हूं पाटणनगर स्थित श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर के व्यवस्थापकों को, जिन्होंने संशोधन-सम्पादन कार्य के लिए मुझे प्रतियों की सुविधा उपलब्ध करवाई । साधुवाद देता हूं दिल्लीनगर स्थित बी. ओल. इंस्टीट्यूट अर्थात् भोगीलाल हरचंद संस्थान के व्यवस्थापकों को जिन्होंने इस ग्रन्थ के मुद्रणकार्य में सम्पूर्ण अर्थ सहयोग दिया ।
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