Book Title: Siddhanta Sutra Samanvaya
Author(s): Makkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
Publisher: Vanshilal Gangaram

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Page 14
________________ विष्य के नाते क्षयोष राम की परीक्ष देना था। विशेष कठिन स्पन पर जहां हम रुककर पंक्ति का प्रथं विचारते थे वो कुशाप्रबुद्धि, सिद्धन रहस्य पाचार्य महाराज स्वयं उस प्रकरण गत भाव का सटीकरण करते थे। वह बाचा और भी कुछ ममय तक चलता परन्तु मुनि विहार में रुकावट भा जाने में हैदराबाद निामम्टेट) धर्म खाते के मिनिष्टर से मिलने के जिये जाने वाले दक्षिण प्रांगेय जैन डेप्युटेशन में हमें भी जाना पड़ा पतः वह सिद्धांत बापन हमारा वहीं रुक गया । मस्। __जप गृस्यों को मिल शास्त्र पढ़ने का अधिकार नहीं तम यह वापन कसा ? ऐसो राक्ष का उठना सहन है और वह बात समाचार पत्रों द्वारा उठाई भो गई है। और यह किसी अंरा में टोक भी की जा सकती है । पर इस सम्बन्ध में हमारा कहना यह है कि हमारा वाचन हमारा पत्र खाध्याय या पठन पाठन नहीं था, किन्तु परम गुरु भाचार्य महारामधादेश का पालन मात्र था। जिसे ९० अपवाद वा विशेष परिस्थिति कहा जा माता है। सर्व साधारण बोग बन्यबों के समान प्रतिदिन Bाचाय में सिद्धांत शास्त्र को भी रखते हैं अथवा शाख समा उसका प्रवचन करते हैं सब पठन पाठन बहलाता है ऐसा पठन पाठन सिद्धांत शाबब गृहस्थों के अधिषर से हो प्रकार निषिद्ध है जिस प्रकार कि सर्वसाधारणसमत खुले रूप में क्षुलक को देशलग्न अथवा बमोटो हटाकर न रहने का निषेध है।

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