Book Title: Siddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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नार्थ २
वचनं महार्थमितिभत्रायुडा नुथाच नाथ त्यादयोबह वो द्दिकर्मका ज्ञेयाः । बलिंभितनइति प्रार्थनाउन यो याच्यर्थे नत्र पार्थको भित्तिरिनिभावः । एवै ग्राहक तक्र ामिन्पय्फ दाहापीय तुम हिनद्दिकमी मानाभावादि नादडियययस्यग्र है विकर्म कन्वान या या ग गः शतमित्यत्र दंडिग्री हाथी ननियाहार्थइनिग समुदायादे कंशन या गुणानुरोधेन प्रधाना हतेर न्याय्यत्वा दिति के व्यतया स्वाक्या उग्रहशावान चनिग्रहपूर्वकयह प्रथ के व लग्र हसाय हा थइनिन तयोः ययी यते तिवाच्या इंडिश्च ग्रहणार्थी ननियहा थइतिभवने चे खने विरोधात च्याग्रह पूर्व कोच के वलय प्रयोगस्य सर्वानुभवसिद्धत्वेन तयो पर्यायत्तया निबंधन ज्ञायक स्पा संबद्ध वापते नोपपयीत्व मंगी कुमतिल ल्प प्रक्रमेचीत्या स्वातावतारे या हे रस्तथा माचे रूपा जेदीयश्व संग्रहइति माधवेन येना अभी ह सत्र के चिद्दिकर्मकत्वेन सगृहीताः॥ तार निकमसमुद्रीमानि वहुवेदी मा चेयं नित्याजपति
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