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तिपादय ६
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सेल द्वितीय॥ ॥ स्वतंत्रः ननु किमि च त्वंन तावन्कृत्याश्रम योग कृति बीजमंकुर की प दावव्णू प्रेग् नच तत्र करो वा व्यापरिवाविप मापारी त्यात विनैवाय पत्रः वो मैचंग छू ती पत्र त्रपयक्तिंचितसा श्रय ले नूक व गाज्ञ। नापि प्रकृनघाल्यात व्यापारजून ककृत्याश्रयत्वा रथादाव चेत ने चैत्रो पन ते करोन) त्यादी चाव्याप्ते तर कार का पत्वे सति कार का तूर प्रोक्त्वमपि निरस्त कार कांतूर निष्टव्यापार जनक चित्तरदला थाचा चेतनेनसंभवतो तिचे त्रों में बेणे त्यादावव्याश्च ते नाहए द्वारा कार्यानुकूल ज्ञाव त्वं कवन मिल्फ तरमीमांसका नागयुक्तं । तस्मान्ने परे बाल युक्त मिनि त्वयव्यापाराच यत्वेन या विवक्षितः सत कोची पुत्र विक्रित्याश्रयेनिया दिवारणाय व्यापारेति उक्तं चाधा तु नोक्त किये नित्यं कार के कन्तयतइति नयचति चैत्रो राम मलेठो नास्तीत्यादौ च पाकानुकूल श्चत्रा श्रप को व्यापारोऽभावन ति योग।। मूलाधारिका घटा २५०
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