Book Title: Siddha Hemchandra Shabdanushasane Agyat kartuka Dhundika Part 04
Author(s): Vimalkirtivijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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XII
सूत्राङ्कः
पत्राङ्क:
१५६
१५७ १५८
१६१ १६२
१६२ १६३-१६५
१६५ १६५-१६७
१६९ १७०-१७३
१७४ १७५-१७७
१७८ १७९ १७९ १८२
ञ्णिति कृति-औ आत ऐत्विधानम् ञ्णिति कृति-ौ वृद्धिनिषेधः ञ्णिति कृति-औ वृद्धिविधानम् उद्यम-उपरमौ निपातितौ परोक्षाया अन्त्यो णव् णित्विधानम् व्यञ्जनादौ विति अद्युक्तोदन्तधातोः औत्विधानम् दि-स्योः अद्युक्तोदन्तधातोः औनिषेधः व्यञ्जनादौ विति ईत्विधानम् दि-स्योः परयोः ईत्विधानम् सिचो लुपविधानम् सिज्लुपि सन आत्विधानम् सिचो लुविधानम् धादौ प्रत्यये सो लुविधानम् सादौ प्रत्यये सो लुविधानम् दन्त्यादौ सको लुक्विधानम् स्वरादौ प्रत्यये सकोऽस्य लुविधानम् अद्यतन्यां आत लुविधानम् । सादिसन्नादिवर्जिताशिति आतो लुकविधानम् दिप्रत्ययलुविधानम् सिप्रत्ययलुविधानम् अशिति प्रत्यये यप्रत्ययलुविधानम् अशिति प्रत्यये क्यप्रत्ययलुविधानम् अशिति प्रत्यये धातोरतो लुकविधानम् अनिट्यशिति प्रत्यये णे: लुक्विधानम् क्तयोः णेः लुक्विधानम् आमादिप्रत्ययपरेषु णेः अस्विधानम् यपि णेः अविधानम् यपि मेडो मित्विधानम् यपि क्षेः क्षीविधानम् शक्ती क्षय्य-जय्यौ निपातितौ क्रयार्थे क्रय्यनिपातितः सादौ प्रत्यये सकारस्य तकारविधानम् क्डिति स्वरे दीडो दीयविधानम्
४।३१५३ ४।३।५४, ४।३।५५ ४।३५६ ४/३१५७ ४।३।५८ ४।३।५९, ४।३।६० ४।३।६१ ४।३।६२-४।३।६४ ४।३।६५ ४।३।६६-४।३१६८ ४।३।६९ ४।३७०, ४।३७१ ४।३७२ ४।३७३ ४।३।७४ ४।३।७५ ४।३७६ ४।३७७ ४।३।७८ ४।३।७९ ४।३१८० ४।३।८१ ४।३।८२ ४।३।८३ ४।३।८४ ४।३८५ ४।३।८६, ४।३।८७ ४।३।८८ ४।३।८९ ४।३९० ४।३।९१ ४।३।९२ ४।३।९३
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१८३ १८५ १८५ १८७ १८८ १८९ १९० १९२
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