Book Title: Siddha Hemchandra Shabdanushasan Bruhad Vrutti Part 02
Author(s): Vajrasenvijay
Publisher: Bherulal Kanaiyalal Religious Trust

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Page 7
________________ 6 महाराज के शुभाशीर्वाद और परम पूज्य अध्यात्मयोगी निःस्पृह शिरोमणि परम गुरुदेव पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर्य श्री की सतत कृपा वृष्टि, परम पूज्य सौजन्यमति, आचार्य देव श्रीमदविजय प्रद्योतन सूरीश्वरजी महाराज साहेब की सतत प्रेरणा और परम पूज्य उपकारी गुरुदेव आचार्य देव श्रीमद् विजय कुन्दकुन्द सूरीश्वरजी महाराज की अदृश्य कृपा और मेरे संसारी पिता पू. मुनिराज श्री महासेन विजयजी म. पी सहानुभूति और मेरे गुरु बन्धु मुनिश्री हेमप्रभबिजयजी की आर्व सहायता प्राप्त होती रही है। उन पूज्यों की असीम शक्ति के बल से ही यह कार्य निर्विघ्न परिपूर्ण हुआ है। उन सब उपकारीयो के पावन चरणों में कोटिशः वंदना पूज्य कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा की व्याकरण विषयक यह कृति कितनी सरल और सुगम है यह तो अभ्यास करने वाले ही समज सकते हैं। कहा भी है कि व्याकरणात् पद सिद्धिः पदसिद्धेरर्थनिर्णयो भवति । अर्थात् तत्त्वज्ञानं तत्त्वज्ञानात् परंश्रेयः ।। अर्थात् 'व्याकरण से पद की सिद्धि होती हैं। पदसिद्धि से अर्थ का निर्णय होता हैं । और अर्थ के निर्णय से तत्व की सिद्धि होती है । तत्त्वसिद्धि मुक्ति की प्राप्ति में हेतुभूत बन सकती है ।। इस दृष्टि से व्याकरण के अध्ययन का महत्त्व है । अभ्यासी महात्माओं इस ध्येय पूर्वक इस ग्रंथ का अध्यन करेंगे तो संपादन का हमरा श्रम विशेष सफल होगा । वैसे तो श्रुत सेवा का आर्व लाभ मिलने से संपादन का श्रम सफल ही है। ___ यह दुसरे विभाग के प्रुफरीडींग आदि के लिये मुनिश्री हितविजयजी और मुनिश्री अनन्तदर्शन विजयजी का भी समय समय पर आर्ब सहयोग रहा है । इसके प्रिन्टींग में गौतम आर्ट प्रिन्टर्स (ब्यावर) के मालिक श्रीफत्तचन्दजी जैन के अपूर्व सहयोग से यह कार्य इतना जल्दी हो रहा है। इस ग्रथ के प्रिन्टी में मतिमंदता से दृष्टिदोष से या प्रेसदोष से कोई क्षतियाँ रही हो. वह सुज्ञजन सुधारने की कृपा करे । खास-खास अशुद्धियां का शुद्धिपत्र दिया गया है। - वज्रसेन विजय

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