Book Title: Siddh Hemchandra Vyakaranam Part 02
Author(s): Darshanratnavijay, Vimalratnavijay
Publisher: Jain Shravika Sangh

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Page 4
________________ पिण्डवाडा के श्री प्रेमसूरिजी परमपूज्य सिद्धान्तमहोदधि आचार्यदेव श्रीविजय . मसूरीश्वरजी महाराज के गुणों की हमें आवश्यकता है। मानो गुण न पा सके तो भी उन गुणों को पाने की इच्छा है। आपके पिता का नाम भगवानजी, माता का नाम श्रीमती कंकुबाई आपश्री का नाम प्रेमचन्दजी । राजस्थान में पिण्डवाडा के हमारे गाँव के वतनी। बचपन में ही वैराग्य उत्पन्न हुआ और चारित्र लेने की भावना हुई । कुटुम्बिजन सीधी रीति से दीक्षा देवे वैसे अनुकूल नहीं थे, फिर भी दो बार तो घर से भागकर गये, परन्तु मोहाधीन कुटुम्बी आपको वापिस ले आये। तीसरी बार रात को घर से निकले, एक रात्रि में ५७ किलोमीटर चलकर स्टेशन गये। गाड़ी में बैठकर पालिताना गये। संयम लेने का कितना दृढ़ निश्चय एवं उसके लिये चाहे जितना कष्ट सहन करना ऐसे दृढ़ निर्धार के बिना यह नहीं बन सकता। दीक्षा लेने के बाद मुनिश्री प्रेमविजयजी बने। स्वाध्याय तो अजब-गजव था कि जिसके परिणाम स्वरूप कर्म के गहन विषय में पारंगत बने । गुरु श्री सकलाग मरहस्वदी, परम पूज्य आचार्यदेव श्री विजय दानसूरीश्वरजी . महाराज ने तृतीय पद पर प्रतिष्ठित किया तब प० पू० आ० श्रीविजय प्रेमसूरिजी बने । आचार्य पद लेने की इच्छा नहीं थी परन्तु लेनी पड़ी थी। तिथि का सत्य निर्णण लाने के लिये आपने आपही के पट्टधर व्याख्यान-वाचस्पति आचार्यदेव श्रीविजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी म० एवं आगमप्रज्ञ आचार्यदेव श्रीविजय जम्बुरिजी महाराज को आगे किये एवं उसका निर्णय भी लाया। इतना ही नहीं आराधक जीवों का अनेक प्रयत्नों से उद्धार किया। आपको एक सुश्रावक ने प्रश्न पूछाये उसका कितना स्पष्ट जबाव दिया कि "(१) ग्रहण के समय · · · · 'दर्शन पूजन का तथा उपदेश आदि का भी निषेध तो हमने कहीं जाना नहीं है एवं आचरा भी नही है । (२) तिथिचर्चा का निर्णय · · · · 'प्रोफेसर वैद्य जैसे मध्यस्थ कों लाकर श्रीजैनशासन के आज्ञा मुजब का निर्णय करा देने में सुश्रावक कस्तुरभाई ने श्रीजैन शासन की अनुपम सेवा की है। इस निर्णण

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