Book Title: Shwetambar Murtipuja Sangh Sammelan Prastav
Author(s): Akhil Bharatiya Jain Shwetambar Murtipujak Shree Sangh Samiti
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Shwetambar Murtipujak Shree Sangh Samiti

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Page 6
________________ और ऐसा करके उन्हें उनके जीवन में प्रविष्ट शिथिलता कां निवारण करने का अवसर दें। इसके बावजूद भी जो एकलविहारी साधु समझने को तैयार न हो उसका समस्त श्रीसंघ हरतरहसे बहिष्कार कर दे। (वृद्धावस्था के कारण जिन साधु-मुनिराजों को अकेले रहना अनिवार्य हो उनके लिए यह नियम लागू नहीं होता है।) (३) पंचम महाव्रत के बारेमें साधुजीवन के प्राणरूप त्यागमार्ग के विकास का मुख्य आधार पांचवे अपरिग्रह महाव्रत के विशुद्ध पालन पर ही है। और इस महाव्रत में क्षति आ जाने से जीवन में अनेक क्षतियाँ दाखिल हो जाती हैं। अतः निम्न बातों का पूरा पालन करने की बिनती की जाती है :(अ) श्रमणसमुदाय के किसी भी व्यक्ति को परिग्रहशीलता की जड मूर्छा को चित्त में जागृत करने वाली किसी भी वस्तु को अपने स्वामित्व में रखने का या उसका संग्रह करने का प्रमाद नहीं करना चाहिये। (आ) मूर्छा और परिग्रह का सबसे बड़ा कारण पैसा है। इस लिये श्रमणसमुदाय के प्रत्येक व्यक्ति को सदा अप्रमत्त हो कर पैसे के मोह से सर्वथा दूर रहना चाहिये। और पुस्तकों के निमित्त, ज्ञान के अन्य उपकरणों के निमित्त, पुस्तकालय के निमित्त, ग्रन्थमाला के निमित्त, ज्ञानशाला या ज्ञानमन्दिर के नाम, अथवा अन्य किसी कार्य के निमित्त किसी भी आचार्य आदि साधु महाराज ने या साध्वीजी महाराज ने, जिस पर वस्तुतः अपना अधिकार हो, ऐसी कोई भी रकम किसी भी नाम से, किसी भी गृहस्थ के यहाँ या पेढी में या संस्था में जमा नहीं रखना चाहिये। (इ) जो श्रमणोपासक भक्ति से प्रेरित होकर, धर्म की सही समझ न होने के कारण अथवा अन्य किसी कारण को लेकर इस प्रकार

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