Book Title: Shukl Jain Mahabharat 02
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 605
________________ अश्वस्थामा ५९७ झल्लाकर अश्वस्थामा बोला-"मामा जी ! आपने यह क्या धर्म धर्म की रट लगा रक्खी है पिता जी का बध धृष्टद्युम्न ने उस समय किया था जब वे अस्त्रं शस्त्र फेक कर ध्यान मान बैठ थे । इस प्रकार कर्म का बन्धन पाण्डवों के हाथो कभी का टूट चुका ! कर्ण कीचड मे फसे रथ के पहिए को निकाल रहा था अर्जुन ने तब उस पर प्रहार किया, भूरिश्रुवा पर अर्जुन ने पीछे से वार किया और भीम सेन ने दुर्योधन की कमर के नाचे वार किया, क्या तब भी धर्म रह गया । पाण्डवो ने तो अधर्म की बाढ हो ला दी: तब मैं धर्म से बन्धा रहूं तो क्यो ? आप चाहे इसे धर्म कहे अथवा अधर्म, मैं तो .. जा रहा हू अपने पिता और दुर्योधन का बदला लेने " ! इतना कह कर अश्वस्थामा पाण्डवो के शिविर की ओर जाने को उठा । यह देख कृपाचार्य और कृतवर्मा भी उठ खड़े हुए "और बोले-“अश्वस्थामा ! आज तुम महा पाप करने पर उतारु हो गए हो । पर हम तुम्हे अकेले शत्रु के मुह मे नही जाने देंगे।" .. । यह कहकर वे दोनो भी प्रश्वस्थामा के साथ हो लिए। . माधो रात बोत चुकी था । पाण्डवो के शिविरो मे सभी सनिक मृदु निद्रा मे साये पड़े थे । घृष्टद्युम्न भी पड़ा था। इतने मे हो अश्वस्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा के साथ वहाँ पहुच गया । अश्वस्थामा पहले धृष्टद्युम्न के शिविर मे घुसा और जाते ही घृष्टद्युम्न पर कूद पड़ा साये पडे धृष्टद्युम्न को उसने कुचल कुचल कर मार डाला और फिर सभी पांचाल राज कुमारों को इसी प्रकार मार डाला। इसके बाद उसने द्रौपदी के पुत्रो की हत्या को । । कृपाचार्य और कृतवर्मा ने भी अश्वस्थोमा का हाथ वटाया और तीनो ने ऐसे ऐसे अमानुपिक अत्याचार किए जैसे कि कभी सुनने मे भी नही आये । यह कुकृत्य करके अश्वस्थामा ने शिविरो मे आग लगा दी , आग बड़े जोरो से भड़क उठी और शिविरों मे फैल गई। इससे सोये पड़े सभा संनिक जाग पड़े और भयभीत हाकर इधर उधर भागने लगे । अश्वस्थामा ने उन सभो को मार डाला जो उसके हाथ लगे 1 फिर उल्लास पूर्वक बोला-"अव मैं प्रसन्न हू । मैंने अपना कर्तव्य पूर्ण किया, अब मै दुर्योधन को यह शुभ

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