Book Title: Shukl Jain Mahabharat 02
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 610
________________ ६०० जैन महाभारत पहले धनुष बाणो से लडे, जव धनुप कट गए तो ढाल तलवार हाथ मे लेकर मैदान मे आगए । अर्जुन को एक वार ऐसा क्रोध आया कि उसने गाण्डीव पर बाण चढाया. ताकि भीम सेन से लड रहे अश्वस्थामा का काम तमाम करदे, परन्तु युधिष्टिर ने उसे रोकते हुए कहा-"भीम ने प्रतिज्ञा की है इसलिए उसे ही लडने दो। वीर जब आपग मे लड रहे हो तो तीसरे को हस्तक्षेप नही करना चाहिए। अश्वस्थामा ऐसी कोई धर्म विरुद्ध बात नहीं कर रहा, जिसके कारण तुम्हे हस्तक्षेप करने की आवश्यकता पड़े।" अर्जुन ने हाथ रोक लिया। उधर ढाल तलवार के भी टूट फूट जाने पर भीम सेन और अश्वस्थामा ने गदा सम्भाल ली । जव दोनो अपनी गदाओं को टकराते तो भयकर ध्वनि निकलती, चिनगारिया झड जाती । दोनो उन्मत्त हाथियो की भाति लडते रहे । ........ और फिर उनमे मल्ल युद्ध होने लगा । आखिर मे एक बार भीम सेन ने अश्वस्थामा को ऊपर उठा कर भूमि पर बड जोरो से पटक दिया। और झट वह उसकी छाती पर चढ़ बैठा । घुटने की एक ही चोट पडनी थी कि अश्वस्थामा 'ची' बोल गया। उसने कहा"भीम सेन ! मैंने हार मान ली । अब मुझे क्षमा कर दो।" परन्तु भीम सेन तो और भी जोश मे आ गया, उसने क्रुद्ध होकर कहा-“निद्राअग्नि द्रौपदी के पुत्रो को मारने वाले और रात्रि मे प्राग लगा कर सहस्रो सैनिको को जला मारने वाले कलंकी तुझे क्षमा करदू ! नही, मैं तेरे प्राण लेकर ही छोड़गा।" ___उसने फिर विनती की---"भीम सेन तुम महाबली हो । तुम क्षत्रिय वीर हो। मैं तुम्हारी शरण पाता ह । क्षत्रिय कभी शरण आये पर हाथ नही उठाया करते ।" "क्षत्रिय धर्म की दुहाई देकर जान बचाना चाहता है नीच । आवेश मे आकर भीम सेन ने कहा-मै तुझे विना मारे नही छोड सकता । कायर जब परास्त हो गया तो क्षमा याचना करता हैं । धूर्त ! जब तू धृष्टद्युम्न और उसके भाईयो को, तथा द्रौपदी पुत्रो का मार रहा था तव तुझे ब्राह्मण धर्म का ध्यान नहीं पाया, अव मुझे क्षत्रिय धर्म की दुहाई देकर अपने प्राणो-की भिक्षा मांगता है ? ठहरा ना भिक्षा माँग कर जोवन निर्वाह करने वाला ब्राह्मण ही।"

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