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गाधारी की फटकार
- धृतराष्ट्र पाण्डवों को अपने साथ ले गए। एक बार पुनः हस्तिनापुर में उत्सव मनाया गया। बड़े ठाठ से युधिष्ठिर की सवारी निकली । और फिर युधिष्टिर आनन्द पूर्वक राज करने लगे।
धृतराष्ट्र को वे सभी प्रकार का सुख देते थे । तो भी उसके मन की वेदना मिटती न थी । वे भूमि पर ही सोते थे और लम्बे लम्बे उपवास करते थे। कुन्ती गांधारी के मन को बहलाने की चेष्टा करती रहती।
विशेष सूचना
इसके आगे श्री नेमनाथ जी का विवाह देवकी का. लाल गज सुकमाल का वर्णन महा सति द्रौपूता का हरण श्री कृष्ण जी महाराज को धात्री खण्ड में जाना विजय प्राप्त करना और द्रौपता की वापिस ना द्वारका नगरी दहन श्री तेमनाथ भगवान का त्याग पाण्डवो की
गवृति.मोक्ष ग़मन, सती राजमती का, त्याग सती द्रौपता का हार पोर मोक्ष गमन इत्यादि जैन महाभारत के तृतीय भाग में पढ़ें।