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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबा के बढ़ते चरण
संकलन : डॉ. हेमंत कुमार
जैनधर्म एवं संस्कृति का मूर्धन्य केन्द्र, गुजरात प्रान्त की राजधानी गांधीनगर-अहमदाबाद उच्च राजमार्ग पर स्थित, साबरमती नदी के समीप सुरम्य वृक्षों की घटाओं से आच्छादित धर्म, श्रुतज्ञान और कला का त्रिवेणी संगमरूप श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ, प्राकृतिक शान्ति व आध्यात्मिकता का आह्लादक अनुभव कराता है.
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એપ્રિલ ૨૦૧૨
महान जैनाचार्य श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रशिष्य राष्ट्रसंत युगद्रष्टा श्रुतोद्धारक आचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के शुभाशीर्वाद से श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की विधिवत् स्थापना २६ दिसम्बर, १९८० के शुभ दिन की गई थी. पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. की यह प्रबल इच्छा थी कि यहाँ पर धर्म, आराधना और ज्ञान साधना की कोई एकाध प्रवृत्ति ही नहीं, वरन् ज्ञान-धर्म की अनेकविध प्रवृत्तियों का महासंगम हो. एतदर्थ आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने पूज्यश्री की महान भावना को मूर्त रूप प्रदान करते हुए धर्म, कला एवं श्रुतज्ञान के त्रिवेणी संगमरूप इस तीर्थ को विकसित कर उनके सपनों को साकार किया. आज श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र अनेकविध प्रवृत्तियों के साथ निरन्तर प्रगति और प्रसिद्धि के शिखर की ओर अग्रसर होता हुआ अपनी शाखाओं - प्रशाखाओं द्वारा धर्मशासन की सेवा में तत्पर है.
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लगभग ४५० वर्ष प्राचीन स्फटिकरत्न की प्रभु पार्श्वनाथ की प्रतिमा से सुशोभित रत्नमंदिर से युक्त आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की आत्मा है. यह स्वयं अपने आप में एक विशाल संस्था है. वर्तमान में ज्ञानमंदिर के अन्तर्गत निम्नलिखित विभाग कार्यरत हैं.
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भांडागार
यहाँ लगभग २,००,००० से अधिक प्राचीन दुर्लभ हस्तलिखित शास्त्र-ग्रंथ संगृहीत हैं. इनमें आगम, न्याय, दर्शन, योग, व्याकरण, इतिहास आदि विभिन्न विषयों से सम्बन्धित अद्भुत ज्ञान का सागर समाहित है. इस भांडागार में ३००० से अधिक प्राचीन व अमूल्य ताड़पत्रीय ग्रंथ विशिष्ट रूप से संगृहीत हैं. इतना विशाल संग्रह किसी भी ज्ञानभंडार के लिये गौरव का विषय हो सकता है. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी ने अपनी भारतभर की एक लाख किलोमीटर से भी अधिक की पदयात्रा के दौरान छोटे-छोटे गाँवों में असुरक्षित, उपेक्षित एवं नष्टप्राय हो रही भारतीय प्राच्यविद्या एवं संस्कृति के इस अनुपम धरोहर को लोगों को प्रेरित कर संगृहीत करवाई है. इनमें अनेक हस्तलिखित ग्रंथ सुवर्ण व रजत से आलेखित हैं तथा सैकड़ों सचित्र हैं.
यहाँ इन बहुमूल्य व दुर्लभ शास्त्रों को विशेष रूप से बने ऋतुजन्य दोषों से मुक्त कक्षों में पारम्परिक ढंग से विशिष्ट प्रकार की काष्ठ मंजूषाओं में संरक्षित किया गया है. क्षतिग्रस्त प्रतियों को रासायनिक प्रक्रिया से सुरक्षित करने का बृहद् कार्य किया जा रहा है. यहाँ संगृहीत हस्तलिखित ग्रन्थों के माइक्रोफिल्म, कम्प्यूटर स्कैनिंग आदि करने का कार्य तीव्र गति से चल रहा है.
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आर्य सुधर्मास्वामी श्रुतागार :
ज्ञानमंदिर में भूतल पर विद्वानों, संशोधकों, वाचकों आदि हेतु कक्ष / उपकक्ष सहित अध्ययन की सुन्दर व्यवस्था युक्त समृद्ध ग्रंथालय है. यहाँ लगभग १,५०,००० से अधिक मुद्रित प्रत एवं पुस्तकें संगृहीत हैं. ग्रंथालय में भारतीय सभ्यता-संस्कृति, धर्म-दर्शन, न्याय - योग आदि विभिन्न विषयों के बहुमूल्य एवं दुर्लभ ग्रंथों को संगृहीत किया गया है जिसमें विशेष रूप से जैनधर्म व भारतीय प्राच्यविद्या से सम्बन्धित सामग्री सर्वाधिक हैं. संशोधन