Book Title: Shrutsagar Ank 2012 04 015
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આચાર્ય દેવર્ધિગણિ ક્ષમાશ્રમણ હસ્તપ્રત ભાંડાગારમાં સંગ્રહિત પ્રાચીન શૈલીમાં આલેખિત હસ્તપ્રતોના સચિત્ર પત્રો. पामाजियाविनाशक दवानामवर प्रेमविवामान्य मनाराय-CONSTRATilmमनिशदिशावताराका valamma NING l kswation बामिय पर Sea ल सणामाकादविवादमराया। जय बज रं दारामदोककसदरमारकामध्छ मामीणीदादिगाहा- लावादि नफीवनामविमाणमा मदस्मादि asinamaaमशिदादी ਪਰ ਸ਼ਸ਼ੋਸ਼ विवान अशा महिनावलम्डालमिलिदिशामाणमालामद सानिमाम्यापमान निरनि अमशिविद्यामानापिनियमिकच्या જૈનસંઘમાં અત્યંત પ્રચલિત અને પરમ આદરણીય પાવન કલ્પસૂત્રની આ પ્રત અંદાજે પંદરમી સદીમાં લખાયેલી હોવાની સંભાવના છે. આ પ્રત દેવનાગરી લિપિમાં લખાયેલી છે. પ્રતમાં 125 पत्रो छ भने पत्रामi 52 यित्र पत्रो छ भने यित्र संध्या 559. मा प्रतर्नु परिभाए। 28.5X10.89. भने પ્રત અવસ્થા શ્રેષ્ઠ છે. नाम सामन्यामाध्यमावेशलान्यामिरमानमतमानाउलान्याधिषियमारोगोयम સમ્રાટ સંપ્રતિ સંગ્રહાલયમાં સંગ્રહિત-પ્રદર્શિત | બહુમૂલ્ય શિલ્યાંકનો लगभग १२वी सदी की संगेमरमर (मार्बल) पत्थर पर निर्मित ध्यानमुद्रा में आसीन पद्मासनस्थ चौमुखजी तीर्थंकर प्रतिमा दांता जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनसंघ, दांता (गुजरात) से प्राप्त हुई है. यह प्रतिमा समोवसरण शिल्प की उत्कृष्ट शैली का उदाहरण है. शिल्प में चारों ओर तीर्थंकर विराजित हैं. प्रसन्न मुखमुद्रा एवं उपशांतभाव युक्त यह प्रतिमा पश्चिम भारतीय शैली की अनुपम कृति है. लांछन एवं लेख के अभाव में प्रतिमा संबंधी विशेष विवरण प्राप्त नहीं है. STUKOBA 02.304 अंदाजित ४थी सदी में बालु पत्थर से निर्मित देवकुलिका युक्त पद्मासनस्थ जिनप्रतिमा है. ध्यानमुद्रा में आसीन, सुगठित शरीर, पार्श्ववर्ती चामरधारी, आकाशगामी मालाधर, दो सिंहाकृति के मध्य में धर्मचक्र एवं अर्ध पद्माकार आसन गुप्तकालीन शिल्प शैली की विशेषताओं को प्रदर्शित करती है. यह प्रतिमा शिल्प स्तंभ का एक भाग होने की संभावना है. लांछन एवं लेख के अभाव से तीर्थंकर की पहचान कठिन है. પ્રાચીન સુંદર પાષાણ શિલ્પો For Private and Personal Use Only

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