Book Title: Shravakachar ka Mulyatmak Vivechan
Author(s): Subhash Kothari
Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf

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Page 3
________________ डॉ. सुभाष कोठारी (2) सत्य अणुव्रत कन्या, पशु, भूमि, धरोहर आदि के सम्बन्ध में असत्य भाषण का त्याग करना सत्य अणुव्रत है। इस व्रत में श्रावक ऐसे स्थूल असत्य का त्याग करता है जिससे समाज, देश और राष्ट्र की हानि होती है और व्यक्ति के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती है। इसके साथ ही साथ इस व्रत में श्रावक ऐसे सत्य का भी त्याग करता है जो सत्य होते हुए भी दूसरे व्यक्ति को पीड़ा का अहसास कराता हो। भगवान् महावीर के अनन्य श्रावक महाशतक का कथानक इसका सर्वोत्तम शास्त्रीय उदाहरण है। अतिचार सत्य व्रत में किसी पर बिना सोच-विचार किये दोषारोपण करना, एकान्त में बातचीत करते हुए व्यक्तियों पर झूठा आक्षेप लगाना, भूठा उपदेश देना, जाली चेक, ड्राफ्ट आदि जारी करना, अतिचार माने गये हैं। वर्तमान में भी इन सभी पर राज्य द्वारा रोक लगायी जाती है। आज भी न्यायालय में धर्मग्रन्थ पर हाथ रख कर आपसे सत्य बोलने को कहा जाता है, पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है और जाली चेक, ड्राफ्ट लेन-देन पर कठोर दण्ड दिया जाता है। इस प्रकार सत्य अणुव्रत में श्रावक सत्य, तथ्य और प्रीतिपूर्ण वचनों का ही प्रयोग करता है, जो समाज को उन्नत और पवित्र बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। (3) अस्तेय अणुव्रत स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी वस्तु को ग्रहण नहीं करना अस्तेय है। सार्वजनिक रूप से प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं को छोड़कर अन्य वस्तु का बिना अनुमति ग्रहण नहीं करना ही श्रावक का अस्तेय अणुव्रत है। अतिचार चोरी की वस्तु खरीदना, चोर को सहायता करना, राज्य नियमों के विरुद्ध आचरण करना, वस्तुओं में मिलावट करना व नाप-तौल में बेईमानी करना अस्तेय व्रत के अतिचार हैं, दोष हैं। वर्तमान जगत में भी उपरोक्त सभी अपराध की श्रेणी में माने जाते हैं। आये दिन पड़ रहे इन्कम-टैक्स व सेल्स-टेक्स के छापे इन अतिचारों के सेवन का ही एक रूप है। आज खाद्य पदार्थों से लगाकर औषधियों तक में मिलावट पायी जाती है। हम अक्सर समाचार पत्रों में देखते व पढ़ते ही हैं कि कभी फूडपोइजनिंग से, कभी जहरीली दवाइयों से एवं कभी जहरीली शराब से हजारों लोग मर जाते हैं। यह सब हमारी प्रामाणिकता पर एक प्रश्नचिन्ह लगाते हैं? इस प्रकार अस्तेय अणुव्रत का निरतचार पालन करने से हम मानव जाति व राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व को भली प्रकार निभा सकते हैं। (4) ब्रह्मचर्य अणुव्रत काम प्रवृत्ति पर.अंकुश श्रावक का चौथा ब्रह्मचर्य अणुव्रत है। गृहस्थावस्था में रह कर व्यक्ति पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता है। अतः श्रावक एक मात्र विवाहिता पत्नी (स्वपत्नी) में पूर्ण सन्तोषी बनकर शेष सभी स्त्रियों के साथ मैथुन सेवन का त्याग करता है। श्राविकाओं के लिए एक पतिव्रत (स्वपति) का विधान किया गया है। 153 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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