Book Title: Shraman Mahavira Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ स्वकथ्य I जीवन जीना निसर्ग है। विकासी जीवन जीना कला, उसका अंकन महाकला और किसी दूसरे के समृद्ध जीवन का अंकन परम कला है। मेरी लेखनी ने परम कला का दायित्व उठाया है। सुदूर अतीत की यात्रा, पग-पग पर घुमाव, सघन जंगल और गगनचुम्बी गिरि-शिखर । कितना गुरुतर है दायित्व ! पर लघुतर बहुत बार गुरुतर दायित्व का निर्वाह किया है । मैं अपने दायित्व के निर्वाह में सफल होऊंगा, इस आत्म-विश्वास के साथ मैंने कार्य प्रारम्भ किया और उसके निर्वाह में मैं सफल हुआ हूं, इस निष्ठा के साथ यह सम्पन्न हो रहा है। भगवान् महावीर की जीवनी लिखने मे मेरे सामने तीन मुख्य कठिनाइयां थी - १. जीवन-वृत्त के प्रामणिक स्रोतों की खोज । २. दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा-भेदों के सामंजस्य की खोज । ३. तटस्थ मूल्यांकन । भगवान् महावीर का जीवन-वृत्त दिगम्बर साहित्य में बहुत कम सुरक्षित है । श्वेताम्बर साहित्य में वह अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित है पर पर्याप्त नहीं है । भगवान् के जीवन-वृत्त के सर्वाधिक प्रामाणिक स्रोत तीन हैं १. आयारो - अध्ययन ९ । २. आयारचूला - अध्ययन १५ । ३. कल्पसूत्र । 1 भगवती सूत्र में भगवान् के जीवन-प्रसंग विपुल मात्रा में उपलब्ध हैं ‘उवासगदसाओ', ‘नायाधम्मकहाओ', 'सूयगडो' आदि सूत्रों में भी जीवन और तत्वदर्शन विषयक प्रचुर सामग्री है । भगवान् के उत्तरवर्ती साहित्य में आचारांगचूर्णि आवश्यकचूर्णि आवश्यकनिर्युक्ति, उत्तरपुराण, चउवन्न महापुरिसचरियं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि ग्रन्थों में भगवान् का जीवनवृत्त मिलता है। बौद्ध साहित्य में भी भगवान् के बारे में जानकारी मिलती है। यद्यपि उसमें वे आलोच्य के रूप में ही अभिलिखित हैं पर जैन साहित्य की प्रशस्ति और बौद्ध साहित्य की आलोचना- दोनों के आलोक में भगवान् की यथार्थ प्रतिमा उभरती है । Jain Education International > For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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