Book Title: Shilodahrutikalpavalli
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
मई २०११
[नोंध :
सिद्धार्थ-त्रिशलाकृत भोजन-विच्छित्ति-विषयक आ त्रण रचनाओ लगभग दोढेक वर्षथी आवीने पडी हती. परन्तु समयनी खेंचने कारणे तेनुं व्यवस्थित संकलन करवामां खास्सो विलम्ब थई गयो ! आजे ते त्रणे रचनाओ साथे ज मूकवामां आवे छे.
आ वर्णनोमां स्वाभाविक रीते ज केटलांक वर्णनो, शब्दो समान अने तेथी पुनरावर्तित थतां होय छे. छतां प्रत्येक वर्णन भिन्न भिन्न ज होय. आना उपरथी तेणे नकल करी तेवं नथी होतुं.
वास्तवमां, कल्पसूत्रनुं वांचन करवानुं होय त्यारे श्रोतावर्गने रस पडे ते माटे विविध स्थानो पर आ प्रकारनां वर्णनो व्याख्याताओ तथा भाषाविवरण/टबार्थना लेखको बोलता/लखता. टबार्थ सेंकडो होय, तेमां एक या बीजा, पहेलांना टबाओनो आधार पण लेवातो ज होय. छतां दरेक वक्ता/लेखक वर्णनने रसिकतानो पुट आपवा माटे कांई ने कांई उमेरता जाय ज. अहीं आपेल त्रणे वर्णनोने जोवाथी उपरोक्त वात स्पष्ट थई जशे.
आवां वर्णनो थकी वानगीओनां नामो, अवनवा शब्दो, भोजनसमारोहमां जळवाता भोजनक्रम - इत्यादि अनेक विषयो विषे जाणकारी मळी रहे छे. तो मध्यकालमां प्रचलित भोज्य पदार्थो विषे पण माहिती मळी आवे छे. अस्तु.
- शी.]
कल्पसूत्र-टबार्थ-गत भोजनविच्छित्ति
- सं. मुनिपुण्यश्रमणविजय विहार करतां डुंगरपुर जवानुं थयु, त्यां उपाश्रयमां कल्पसूत्र-टबार्थनी एक प्रति जोई. तेनां पानां फेरवतां आ ‘भोजनविच्छित्ति' जोवा मळी. 'अनुसन्धान'-४९मां आवी एक वर्णनात्मक कृति प्रकाशित थई हती, ते याद आवतां आनी नकल करी, तेनी साथे सरखावी जोई, तो बन्ने वर्णनमा घणी समानता जोवा मळी. प्रकाशित कृतिमां 'ग्रन्थान्तरानुसारेण' एम छे, तो ते आ कल्प-टबा परथी ज ऊतारेल हशे, एवी सम्भावना छे.
प्रतिना अन्तिम पत्रमा 'सं. १८२७ना आषाढ सुदि ४ भोमवासरे, कोटा नगरे प्रवरतन्नसागर महाराजने वांचवा माटे पण्डित सूरजमले लखी' एवी नोंध छे.

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23