Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 20
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 24 // // 25 // // 26 // // // 27 // // 28 // // 29 // अहं तिरोभविष्यामि, नास्ति मेऽवसरोऽधुना / अस्यां स्थितायां ज्ञेयस्तु, स्थितोऽहं परमार्थतः कनिष्ठोऽयं मम भ्राता, युक्तस्तव सखाऽधुना / स्तेयाख्योऽभूत् पुरा छनः, प्रादुर्भूयाधुनाऽऽगतः द्रष्टव्योहमिव स्नेहात्, तदयं प्रियबान्धवः / मयोक्तं मे स्वसा या ते, त्वद्भ्राता मम बान्धवः तदाकर्ण्य मृषावादस्तिरोऽभूतः प्रमोदभाग् / भगिनीभ्रातरौ प्राप्य, तौ ममोल्लसितं मनः विप्रतार्य जगत् सर्वं, मुष्णन् परधनं ततः / जातोऽहं निघृणः शङ्कारहितः क्रूरचेष्टितः लोकेषु लघुतां प्राप्तस्ततोऽहं तृणतूलवत् / . इतश्च या क्षितिभुजो, भार्या कमलसुन्दरी साऽभूत् कनकसुन्दर्याः, सखी प्रियतमा ततः / सखा मे मातृसंबन्धाद् विमलोऽभून्नृपात्मजः स्नेहभृत् साध्यहीनोऽपि, निर्व्याजोऽभूत् सखा स मे / चन्द्रमङ्क इवाहं तु, विमलं मलिनः श्रितः शाठ्याशाठ्यभृतोरेवमावयोर्यान्ति वासराः / सह क्रीडाविनोदेन, प्रथितस्नेहशालिनोः कौमारस्थोऽथ विमलो, जग्राह सकलाः कलाः / तारुण्यं प्राप लावण्यसुधारसतरङ्गितम्.. मया सहान्यदा प्राप्तः, स क्रीडानन्दनं वनम् / तालहिन्तालमालूरनागपुन्नागराजितम् विलसत्केतकीजातिचन्दनागुरुकेसरम् / सहकारलतास्फारद्राक्षामण्डपमण्डितम् 3 // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 //

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